हार-जीत भूलकर

प्रेम में क्या हार हो क्या जीत 
ये परमात्मा का सुमधुर गीत 
अंतरात्मा को महसूस करना 
यहीं जगत की है सच्ची रीत 

जीत से ख़ुशी हो हार से विकल 
समभाव से जीवन होता सफ़ल 
हार जीत भुलकर ऊपर उठना 
कीचड़ में खिल जाता है कमल 

बस पा लेना ही जीत नहीं होती 
कुछ खो देना हार शक्ति से भरती
नन्ही चींटी दीवार पर चढ़ सौ बार 
इच्छाशक्ति की वो मिशाल बनती

सफ़ल होने का यही है सही ढ़ंग 
आशा-निराशा जैसे इक दूजे संग 
स्थिर मन सतत कर्म जीवन सार 
हार-जीत आपसी गहरा सम्बंध

पराजय में छिपा हुआ है अजय
मन संघर्ष से पाता इंसा विजय
जीवन चक्र को जो समझ पाता
करण-अर्जुन दोनों समान हृदय 

हार-जीत भूलकर कलम लिखती 
माँ शारदे को लेखन समर्पित करती 
मन के योग से किया गया हर कार्य 
सबके जीवन में नया अध्याय रचती।

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