नमस्कार दोस्तों,
आज की सुबह शांत और निर्मल आनंद से भरी थी, क्योंकि काजा का ये तीसरा दिन था, सोचा थोड़ा जानकारी लेते हैं, होटल के मालिक के साथ और कई स्थानीय लोगों के संग हम बातचीत करने लगे, उनसे क्या बातें हुईं, उससे पहले बता दूँ कि हमने पिछली शाम बेहद स्वादिष्ट गरमा-गरम समोसे, जलेबी, रसगुल्ले और आलू पराठा, दही खाया, जो काजा में सिर्फ एक ही ढा़बे पर उपलब्ध होता है, खाकर मजा आ गया।
हाँ तो फिर गुनगुनी सी धूप में चाय की टेबल पर खूब चर्चा हुई, कुछ स्थानीय लोगों से भी बात की, कइयों का मानना है कि भारत सरकार जो यहाँ पर पक्के मकान बनाने की सब्सिडी दे रही है, वो मौसम के अनुसार उनके स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है,पर यहाँ की ट्राइबल जाति निवासियों को सारी सुविधाएं मुहैया करवाई जाती है, जिससे भारत पड़ोसी मुल्कों से बॉर्डर पर सुरक्षित रह सके।
यहाँ के रहन – सहन, जीवन-शैली को व्यवसायीकरण में बदल दिया गया तो प्रकृति की मूलभूत नैसर्गिक सौंदर्य का नाश हो जाएगा और जानकारी दी कि यहाँ सिर्फ़ नवंबर तक ही होटल खुले रहते हैं, उसके बाद सिर्फ होम सराय ही उपलब्ध होते हैं, क्योंकि मार्च तक इतनी बर्फ बारी रहती है कि यहाँ रुकना सम्भव नहीं हो पाता है, नलों में भी पानी जम जाते हैं, पर्यटक भी कम हो जाते हैं।
ऐसी कई चर्चा के बाद उन्होंने कहा भगवान के गांव आप लालुंग चले जाए, बड़ा अच्छा लगेगा, 28 किलोमीटर दूर है,हमारा क्या! हम तो हरफ़नमौला होकर निकल पड़े, देखा रास्ते में स्पिती नदी के पास कुछ गाड़ियां खड़ी है, हम ने भी नदी की ओर गाड़ी उतार ली,
ओह हो! क्या मज़े आए,नदी में स्वच्छ जल बह रहा था,हमने पत्थरों से एक घर बनाया,
उन पर्यटकों के साथ थोड़ा नाश्ता किया, नदी किनारे फोटो उतारी और फिर आनंदपूर्वक लालूंग गांव की ओर चल पड़े।
पहाड़ों पर 28 किलोमीटर बहुत बड़ा सफर हो जाता है। यहाँ के पहाड़ों में ये मान्यता है कि अगर ये लाल हैं तो देवता नाराज हैं और पीले हैं तो खुश है, हमें तो पीले ही नजर आते रहे, शायद मन की परिभाषा के अनुसार हमें दिखाई दिए,पहाड़ों की बनावट बिल्कुल अलग तरह की थी, जिसे हमने जीवन में पहली बार देखा था।
मन ही मन देवताओं को प्रणाम किया। बहुत ही ऊंचाई पर बसा यह छोटा सा गाँव था ये, असीम शांति, सिर्फ चंद लोग ही नजर आए,37 घर,लगभग 170 लोग रहते हैं, यहाँ की मोनेस्ट्री बहुत सुंदर है,मंदिर में बुद्ध के मूर्तियाँ है, नया मंदिर भी अति भव्य है, ठंड में यहाँ माइनस 25 डिग्री हो जाता है, पर अक्तूबर के महीने में ख़ुशनुमा मौसम रहता है। पहाड़ों पर रंगबिरंगे कपड़े हवा में उड़ते हुए बड़े लुभाते है और हम सभी में ज़िंदगी जीने की तमन्ना भरते हैं,लालूंग इतनी ऊंचाई पर होकर भी दुनियाँ से जुड़ा हुआ है, यहाँ के लोग नेटवर्किग के जरिए जुड़े हुए हैं।
अब वापस हमें नीचे काजा घाटी के लिए उसी रास्ते से उतरना था, मन तो नहीं हो रहा था, पर फिर हम नीचे जब उतरे तो पिन वैली का बोर्ड दिखाई दिया और ताबो में हमें कहा था कि जरूर जाएं, बस फिर क्या था चल दिये पिन वैली। स्पिती नदी के सहारे-सहारे एकल रोड है जो वहाँ जाती है, बड़े मज़े आ रहे थे,ऐसा आनंद कि जैसे परिंदे को पर मिल गए हो, ऐसा दृश्य जो कल्पनाओं की दुनियाँ से परे था।
गाना गाते हुए, मस्ती के साथ वहाँ पहुँचे, बहुत ही संकीर्ण घाटी, जिसमें एक ओर बर्फ से ढ़के पहाड़, दूसरी ओर रेगिस्तान, तीसरी ओर काले चमकीले पहाड़ और भी न जाने अलग-अलग रंगों के पहाड़ों से ढ़की यह घाटी और स्पिती नदी का कल-कल बहना, जैसे हमें कह रही थी कि निकल काम, क्रोध, मद, लोभ के मायावी दलदल से और जीवन को खुबसूरत प्रकृति से जोड़ कर जी ले जरा। ऐसा भी एक पल था, जहाँ हम बिल्कुल खो गए, चूंकि पर्यटक हैं तो लौटना जरूरी है,खुशियों को सांसों में भर कर पुनः काजा के लिए रवाना हो गए और वहाँ से सीधे काजा की मोनेस्ट्री और स्तूपा देखा,पूजा चल रही थी, बड़े आराम से देखने के बाद I Love Spiti के बोर्ड पर फोटो खिंचावाई
वहाँ से बाजार में प्रवेश कर लिया, कुछ खरीददारी की, यहाँ की चिली गारलिक चटनी बड़ी प्रसिद्ध है,स्पिती का मोमेंटो भी लिया साथ में और भी कई छोटे-मोटे समान खरीद कर हम ने विश्व के सबसे ऊपर स्थित पेट्रोल पंप में डीज़ल भरवाया और होटल आ गए, क्योंकि कल यहाँ से नाको गाँव के लिए निकलना था।
तीन दिनों में भावों का गुलशन खिल गया था, होटल के भीतर हज़ारों पर्यटकों के संदेश लिखे हुए थे, अधिकांश अंग्रेज़ी भाषा में, जो मेरे दिल को थोड़ा अखर भी रहा था, मुझे उन्हें हिन्दी मातृभाषा में उपहार देना था, कमरे में गई, एक सुंदर सी कविता लिखी, होटल के मालिक बेदी जी और उनकी ऑस्ट्रेलियन पत्नी को रात में उपहार स्वरूप जब दिया, वो दोनों हृदय से गद्-गद् हो गए, उनके सभी कर्मचारियों ने भी कविता की भूरि-भूरि प्रशंसा की
उन्होंने हमें उपहार स्वरुप वहाँ की बहुमूल्य एवं स्वादिष्ट खुरबानी भेंट की, हमारा रिश्ता तो नया था पर दिल से पुराना हो चुका था, कविता भेंट देने के बाद उन्होंने मुझे क्या कहा वो बताऊंगी आपको मेरे अगले पोस्ट में।