राजनीति इतनी बेबस क्यों?
किसी ने क्या खूब कहा है –
“यहाँ हर शासक दुर्योधन है,
यहाँ न्याय न मिल पायेगा,
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठा लो,
अब गोविंद न आयेगा।”
राजनीति का अर्थ है राज करने वालों की नीति यानि कि राजा की नीति। जब उद्देश्य सिर्फ राज करने का हो जाए तो यह अवश्य ही बेबस और लाचार ही बनेगी। राजनीतिज्ञों द्वारा ही इसे बेबस बनाया गया है, ऐसा हर आम नागरिक सोचता है, पर यह सच नहीं है, इसमें देश के सभी नागरिकों की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है, वरना यह इतनी बेबस और लाचार नहीं बनती!
“हवाओं का रुख बदलने लगा है,
अब तुम अपनी चाल भी बदल लो,
उठो,जागो और आगे बढ़ो,
अपने नांव की पाल बदल लो।”
मेरे उँगली पर यह वोट का निशान जैसे-जैसे देखती हूँ, वैसे-वैसे और गहरा नज़र आता है। वोट डालना लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है, जो हमारे राष्ट्र के हित में है। अपना मत ही मतदाता का अमोघ हथियार है, पर क्या मात्र वोट डाल देने से हम जिम्मेदार नागरिक की भूमिका अदा कर लेते हैं?
हाल ही में राजस्थान में हुए चुनाव के दौरान वोट डालने के लिए जब मैं चुनाव की लाइन में खड़ी थी, वहीं पर मेरे पीछे करीब-करीब 24 साल की एक युवा लड़की निरंतर वर्तमान राज्यकाल पर अपनी बड़ी नाराज़गी व्यक्त करती जा रही थी और कह रही थी कि मैं तो NOTA में जाना चाहती हूँ क्योंकि हमारे देश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ हमें बेवकूफ़ बना रही हैं, काफ़ी देर सुनने के बाद मेरा उससे कुछ सुदृढ़ सवाल, जो उसे भीतर तक झकझोर गया और फिर वो चुप होकर सोचने को विवश हो गई। मैंने उससे कहा कि हमारे इस ज़ोन में कितने राजनेता खड़े है, क्या तुम्हें इस बात की जानकारी है? माना कि सरकार तो बहुत खराब है, पर तुमने अब तक अपने देश के लिए कुछ किया है? चलो छोड़ो तुम तो पढ़ी लिखी हो तो ऐसे में क्या अब तक तुमने किसी को शिक्षित किया? क्या गवर्नमेंट के चलाए गए किसी भी अभियान को समझने की जरूरत समझी? क्या इस शहर को स्वच्छ और मनमोहक बनाने के लिए किसी को प्रेरित किया? क्या गरीबों की बस्ती में जाकर किसी को रोजगार दिया? ऐसी कई बातों को सुनने के बाद वहाँ कई पुरुषों एवं महिलाओं ने मेरा समर्थन किया और वो नतमस्तक हो गयी। यहाँ पर इस वाक्या का उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि सब कुछ सरकार पर छोड़ने से हम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकते हैं।
महापौर से जाकर मेरा मिलना, इस ज़ज्बे के साथ था कि मेरे शहर को विशिष्ट बनाने में मेरा योगदान कैसे हो? उनका एक ही उत्तर था कि स्वच्छता का यह अभियान बिना जनता के सहयोग के संभव नहीं है। कुछ को तुम जगाओ, कुछ को मैं जगाता हूँ, और अपनी क्षमतानुसार निरन्तर प्रयासरत रही, यही लोकतांत्रिक जिम्मेदारी का स्वरूप है।
हम सब ही कहते हैं कि राजनीति का मुखौटा घिनौना होता चला गया है उसकी एकमात्र वजह यही है कि हम इसे सबल बनाते गए हैं। बड़ी धन राशि देकर नेता बनने की टिकिट ली जाती है, पर यह टिकिट की धन राशि आती कहाँ से है? निसंदेह भ्रष्टाचार से ही आती है, वरना एक ईमानदार व्यक्ति अपनी मूलभूत सुख सुविधा और अपने परिवार का पालन पोषण कर ले, इतना ही धन कमा पाता है या उससे थोड़ा ज्यादा, बस! सच पूछो तो इस भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता कौन है? घूस लेने वाला कोई है तो देने वाला भी कोई तो जरुर है। निजीकरण से ऊपर उठ कर अच्छाई का सृजन करो, भ्रष्टाचार अपने आप दफन होगा, पर समस्या यही है कि जल में रहना है तो मगरमच्छ से कैसे बैर करें!
क्या भगवान राम स्वर्ग से आयेंगे हमारी समस्याओं का समाधान करने? जी नहीं, हमें स्वयं ही इसका समाधान निकालना होगा। समस्याएं हैं तो हल भी है। देश में जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ेगा वैसे-वैसे नई क्रांति का संचार होगा। ग़ौर से देखा जाए तो समय बदलने लगा है,जनता जागरूक होने लगी है, एक नया दौर शुरू हो गया है, नयी युवा सोच राजनीति में अपना कैरियर को देखने लगी है, वोट डालने के लिए आपको अनेकों नाम भी चयन करने के लिए मिलने लगे हैं, इसलिए बहुत जल्दी ही राजनीति का मुखौटा स्वच्छ होगा। सबल, साहसी और शिक्षित परिवार स्वस्थ समाज का निर्माण करता है। स्वस्थ और अनुशासित समाज सुदृढ़ राष्ट्र की संरचना करता है।
अब वक्त आ गया है बेबस और लाचार राजनीति की काया पलट करने की,
आओ! हम सब मिलकर आह्वान करे ईमानदार राजनीति की, एक स्वच्छ, ऊर्जावान और उज्ज्वल भविष्य की!
“जिनके वजूद होते हैं,
वो बिना पद के भी मजबूत होते हैं।”
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