ईश्वर चंद विद्यासागर का जन्म पश्चिम बंगाल में 26 सितंबर 1820 को हुआ था। बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था। दार्शनिक, लेखक, सुधारक शिक्षाविद्, अनुवादक और संस्कृत भाषा के अगाध पाण्डित्य के कारण विद्यार्थी जीवन में ही संस्कृत कॉलेज द्वारा उन्हें ‘विद्यासागर’ की उपाधि प्रदान की गई थी। हमारे स्कूल के समय पढ़ाई में अव्वल आने वाले हर विद्यार्थियों को इनके नाम की उपाधि दी जाती रही है, इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है! बाल विवाह, महिला शिक्षा और विधवा विवाह के लिए इन्होंने समाज में अपनी आवाज़ को जमकर उठाया और अपने लड़के का विवाह भी विधवा से किया, जो समाज के लिए मिशाल बन गया। विधवाओं को सफेद साड़ी से बाहर निकाल कर उनके जीवन में रंग भरने का काम किया, इसके लिए विधवा पुनर्विवाह का कानून पारित करवाया।अपने आत्मविश्वास, मनोबल और इच्छा-शक्ति से स्त्री शिक्षा के लिए 35 स्कूल खुलवाए और निरंतर समाज सुधारक के रूप में अपने जीवन को समर्पित किया, जो सभी के लिए प्रेरणादायक है।
साधारण से असाधारण बनने की एक प्रेरक प्रसंग – लंदन की सभा को संबोधित करने पहुँचे तो पता चला कि लोग बाहर इंतजार कर रहे हैं, पूछा कि क्या वजह है तो बताया गया कि सफाई कर्मचारी नहीं आए हैं, उन्होंने स्वयं झाड़ू लगा कर सबको अचंभित कर दिया। समय की पाबंदी, सरलता, सहजता, बुद्धिमत्ता और कर्मठता का दूसरा नाम विद्यासागर ही तो है।
समाज बड़े परिवर्तन का साक्षी ही नहीं बना बल्कि मानवता के कल्याण के लिए इनके द्वारा दिया गया योगदान जीवन पर्यन्त नमन योग्य है।
महिलाओं के उत्थान हेतू अग्रणी भूमिका निभाने वाले ईश्वर चंद विद्यासागर की पूरी जीवनी कुछ चंद शब्दों में बयाँ करना सम्भव ही नहीं असंभव है।
वर्तमान समय में फिर एक ईश्वर चंद विद्यासागर जैसी महान विभूति की आवश्यकता है जो शिक्षा के क्षेत्र में हो रही कुरीतियों को खत्म करे और महिलाओं के उत्थान हेतु सशक्त आवाज़ का आह्वान करे।