ख्वाहिशें दम तोड़ रही है उम्मींद का दामन बचा नहीं है ज़िंदगी दर्द जोड़ रही है खुशियों का आलम सजा नहीं है मुझ को नहीं हो रहा है यक़ीन क्यूँ दिल में उमस-सी तारी है बेबसी से गुजर रहा है दिन अश्कों से रात अक्सर भारी है। भीड़ में भी तन्हा ख्यालों ने बैचैनी से मन को भर दिया है थोड़ी सी उमस ने ही उजालों को अंधेरों से ढ़क दिया है अनकहे लब्जों की बारिश बरस न सकी बड़ी बेचारी है कसक से भरी रूह से लिपटी दिल की ये गहन बीमारी है। गुमसुम सी चांदनी नभ से टूटते ग़मगीन तारों की बारात मानो छीन कर ले गई वो मुझसे सारे सपनों की सौगात कोरों में नमी तअज्जुब ख़ुद से ही तिल-तिल कर हारी है अब कुछ बचा नहीं ज़माना भी कहता हालातों की मारी है। कब बरसेगा सावन झूम के मिटा देगा मन की सारी घुटन पलकों के तले कैद घटा आज़ाद सुकून से भीगेगा अंतर्मन बादलों की हल्की बूँदों में मंद-मंद हवा बह रही बड़ी न्यारी है थोड़ी उमस दिल में फागुनी रंग छम-छम बारिश की तैयारी है।
2021-03-04