तुमसे ये किसने कहा... भटक गई हूँ ख़्वाबों के पीछे भाग रही हूँ अंधाधुंध आँखें मींचे दौलत कमाने के होड़ में लगी नाते रिश्ते तोड़ के आगे बढ़ी। तुमसे ये किसने कहा... मेरी दीवानगी हुई हद पार बेपरवाह मोहब्बत में हार ए शर्मो हया को छोड़ कर ख़ुद को ही चोट दी हर बार। तुमसे ये किसने कहा... मैं वक़्त से आँखें चुराती हूँ टूटे सपनों को सजाती हूँ ज़िंदगी की किताब खोल कर पन्नों का हिसाब लगाती हूँ। तुमसे ये किसने कहा... मेरा इश्क जैसे भीगा मौसम खुशबू महक चंदन सा बदन बूंद बूंद में गिरते छिपे आँसू शोर में दबी दिल की धड़कन। तुमसे ये किसने कहा... मेरे जानू अब थकने लगे हैं राह पर कदम रुकने लगे हैं मुझसे अब वो लड़ने लगे हैं बढ़ती उम्र से डरने लगे हैं। तुमसे ये किसने कहा... ये लेखनी महज वाह वाही सम्मान पत्र की चाह वास्ते दिल की आवाज़ कलम से निश्चल सोच अनोखे रास्ते।
2020-11-03