तर्क और वितर्क करते-करते कब कुतर्क से ग्रसित हुए गंवा दिए अपना अमूल्य जीवन नहीं हम विकसित हुए हठ असंयम अनर्गल बातों से ख़ुद की ऊर्जा को नष्ट किया माना बनाया स्वयँ को विजेता अहंकार मूर्खता से पथ भ्रष्ट किया। कुतर्क को क्यों देते हैं हम तर्क भ्रम के बीमारों को कहाँ पड़ता है फर्क़ मैं सही हूँ या नहीं पर तुम हो गलत इसी सोच से हो जाता है इनका बेड़ा गर्क। तार्किक तर्क को बनाता है धार-दार संभावना विषय समझने की होती बुद्धि अपार तर्क सम्मत ज्ञान का होता अपना दृढ़ आधार। जीवन के अवसर को तुम जानो दंभ और कुतर्क से मत हो विघटित सम सामयिक आचरण नीति सिद्धांतों से समस्या का समाधान निकालो।
2020-06-15