कोरोना ने एक दिन मुझे इतना डरा दिया कि रात सोते हुए को मुझे जगा दिया क्या मृत्यु इतनी नजदीक खड़ी है जैसे बाजूवाली की खिड़की खुली है। डर से क्या ऊपर निकल पाऊँगी सामान्य जीवन क्या वापस जी पाऊँगी डर कि लहर दौड़ने लगी थी मन में मृत्यु के बोझ तले दबने लगा था जीवन ये। यकायक अँधेरा सा छाने लगा धुँधला सा मंजर आँखों को डराने लगा भटकते सायों ने मुझे भयभीत किया हृदय वेदना आत्मबोध से त्वरित किया। आसमाँ पर कड़कती बिजली झमाझम बारिश घनघोर है हवेली हुई खंडहर वीरान सड़कों पर न कोई शोर है कमज़ोरी हो रही है मुझ पर हावी डर का भीतर ज़ोर है पर ऐसी ही काली रात के बाद आती सुहानी भोर है। ऐ मधु! उठ.. निडर बन खुद में तू आत्मविश्वास जगा ले मौत से लड़कर तू जीवन को पैगाम भिजवा दे अस्तित्व पर पूर्ण विराम नहीं लगने देना है डट कर करना है तुम्हें मुक़ाबला साँसों को निष्प्राण नहीं होने देना है। इस जगत की यही सच्ची रीत है डर के आगे ही तो हमारी जीत है माना जो आया है सो जायेगा मृत्यु के खौफ से... क्या तू ख़ाक जीवन जी पायेगा!!!