रफ़्तार
2020-07-20
तीव्र हवाऐं चीरती कानों को छीन लिया ज़िन्दगी का सुकून वृक्ष हिलता पत्ता पत्ता डर रहा तेज़ रफ़्तार से गिरता पड़ता सभंल रहा न जाने क्यूँ दौड़ रहे हैं सब ठहराव नहीं किसी में अब ख़्वाबों के मुकम्मल की आरज़ू में रुकेगा ये काफ़िला कब!