हर उम्र के दराज़ पर एक नया रूप धरती कभी बेटी कभी बहन बन जीवन में रहती अपने स्नेह प्रेम से घर आँगन को महकाती कभी पत्नी कभी माँ बन रिश्तों को सजाती नारी जीवन संयम धैर्य सहनशीलता से चला अपनों को एक सूत्र में पिरो कर रखती कला अंतर्मनContinue Reading

राखों के ढेर से अब भी काले धुएँ निकल रहे हैं जमीं में दफन ख़ामोशी बन दिल में धधक रहे हैं मासूम बेटी को मारकर नाले में जा गिरा दिया धिक्कार दरिंदों का दुष्कर्म  आँचल तार-तार किया। खामोश गहरी आंखे टूटते बिखरते वृद्ध  माता पिता दिल में अथाह पीड़ा जीवनContinue Reading