कौन से जीवन का कसूर भाग्य क्यूँ हुआ मजबूर संसार चक्र है नासूर बाल मजदूर कभी बेचता गुब्बारे कभी बेचता पतंग बेहाल फटेहाल जिन्दगी है ख़ुद से ही तंग छोटू दो कप चाय लाना रिश्ता इन शब्दों से बड़ा पुराना नन्हें हाथों से जूठे बर्तन धीरे-धीरे होता परिवर्तन गरीबी शोषणContinue Reading