आवारा
2022-05-07
रात की तन्हाई बना देती है मुझे आवारा नापता हूँ मैं शहर की हर गली हर चौबारा रोशनी में नहाई सड़कें भी लगे बुझी सी ठोकरें खाता फिरूँ दर-ब-दर मारा-मारा। गुम हूँ आवारगी में मेरा कोई ठिकाना नहीं बेवफ़ाई में खाई चोट किसी ने जाना नहीं कुछ अफ़वाह बेवजह बदनामContinue Reading