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अभियान – Ek Pehal https://www.ekpehalbymadhubhutra.com आओ हम सब मिलकर इस एक पहल को नयी सोच और नयी दिशा की ओर ले चले। Wed, 28 Nov 2018 09:14:11 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=5.4.1 जेब्रा क्रॉसिंग हक़ीक़त या सिर्फ सपना https://www.ekpehalbymadhubhutra.com/zebra_crossing_haqikat_ya_sapna/ https://www.ekpehalbymadhubhutra.com/zebra_crossing_haqikat_ya_sapna/#comments Tue, 27 Nov 2018 16:21:58 +0000 https://www.ekpehalbymadhubhutra.com/?p=147 Continue Reading]]> परिवहन विशेषांक – 3
जेब्रा क्रॉसिंग हक़ीक़त या सिर्फ सपना –
जेब्रा क्रॉसिंग का जिक्र करते ही जेब्रा नाम का आकर्षक जानवर, जिसके शरीर पर काले एवं सफेद रंग की पट्टियां होती हैं और सोचे तो बचपन से ही हमें ज़ेड से जेब्रा ही सिखाया जाता है, यातायात के लिए जुड़ा यह नाम क्यों और कैसे प्रचलित हुआ, इसके बारे में जानकारी होना परिवहन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 1930 से पैदल चलने वाले यात्रियों के लिए शुरू हुए इस अभियान को ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट के रिसर्च के दौरान सफेद और काली पट्टियों की डिज़ाइन दिखाई गई, जिसमें सुरक्षित तरीके से रोड को पार करने का विशिष्ट तरीका बताया गया और 1951 में जेब्रा क्रासिंग के नाम पर यह मूर्त रूप हुआ।
ब्रिटेन से प्रभावित होकर यूनाइटेड किंगडम, आयरलैंड और कई देशों ने पैदल चलने वाले नागरिकों की सुरक्षा के लिए जेब्रा क्रॉसिंग पर विशेष ध्यान दिया, जिससे वहाँ के नागरिक सुरक्षित रोड को पार कर सके। इसी जेब्रा की थीम पर यूके में लैम्प पोस्ट होते हैं, जिसे बेरीश बीकोन्स कहते है। ये लैम्प पोस्ट काले और सफेद पट्टियों की डिज़ाइन में होते हैं और इनमें लाइट की नारंगी बॉल रहती है।
भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ जेब्रा क्रॉसिंग सिर्फ नाम के लिए है,यहाँ आम नागरिकों के लिए सड़क पार करना चुनौती है या यूँ कहिये कि आम नागरिकों के लिए ये रोज का खेल है, वजह या तो वे बहुत निर्भीक है या जिन्दगी के प्रति लापरवाह। 
एकमात्र भारत देश को छोड़ कर पूरे विश्व में सड़क पार करने के लिए जेब्रा क्रासिंग का ही इस्तेमाल किया जाता है। भारत में ट्रैफिक व्यवस्था में शुरू से ही लचीलापन रहा है, नियमों में सख्ती की कमी, जनसंख्या अधिक, लापरवाह नागरिक, सड़कों पर पट्टियों का अभाव, लाइटों की कमी जैसे कई कारण है।यातायात को अनुशासित एवं सुचारू रूप से बनाने के लिए जेब्रा क्रासिंग का महत्वपूर्ण योगदान है।हमारे देश में अधिकतर जेब्रा क्रॉसिंग धुँधली ही रहती है और उस पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
गाड़ियों का पीली पट्टी के पीछे खड़ी करना जरूरी है, ताकि जेब्रा क्रॉसिंग पर पैदल चलने वाले लोग असानी से रास्ता पार कर सके। इसे न मानने वालों पर कड़ी सख्ती बरती जाए और जुर्माना भी लगाया जाना चाहिए। इसके साथ रोड पार करने के लिए ट्रैफिक सिग्नल होना चाहिए, जिसे देखते ही नागरिक सुरक्षापूर्वक रास्ता पार कर सके। नागरिकों का उधेड़बुन में रास्ता पार करना वाहन चालक और पदयात्री दोनों के लिए ही असमंजस की स्थिति बनाता है और ऐसे में दुर्घटना की आशंका बनी रहती है साथ ही यातायात भी हमेशा असुरक्षित और अस्त-व्यस्त बना रहता है।
कई रास्तों पर सरकार द्वारा ऊँचे नुकीले लोहे के डिवाइडर भी बनाये गये हैं परन्तु हम में अनुशासन है ही कहाँ! बंदर हमारे पूर्वज रहे हैं वो हम सदैव सिद्ध करने के लिए तैयार रहते हैं, कूद फांद कर कब, कौन, किस गाड़ी के सामने आ जाता है, पता ही नहीं चल पाता है। यह स्थिति अत्यधिक भयावह होती है और हादसे को आमंत्रित करती है। अपने अच्छा खासे जीवन को हम स्वयं खतरे में डाल कर यही सोचते हैं कि क्या फर्क पड़ता है – “जिन्दगी मिल जाएगी दोबारा”।
हाल ही में भारत के दिल्ली शहर में राजाजी मार्ग पर 3डी सफेद पट्टियों से बना जेब्रा क्रॉसिंग  गाड़ी चालक को पहले ही रोक देता है और इसी को देखते हुए आइसलैंड देश ने भी ऐसे ही जेब्रा क्रॉसिंग को बनाया है, जहाँ हम स्वयं अनुसंधान कर इस तरह की जेब्रा क्रॉसिंग बनाने लगे हैं, जिसे दूसरे अन्य देश इसे फॉलो भी करने लगे हैं, उसके उपरांत भी हम इसका उपयुक्त उपयोग करने में असफल है उसकी वजह है कि न हमारे यहाँ गाड़ी चालक कम है, न ही पैदल चलने वाले यात्री किसी से कम है और उसके ऊपर न ही यातायात हवलदार सही तरीके से अपने कर्तव्य को निभाने में सक्षम है।
वर्तमान में भारत तीव्र गति से विश्व के नक्शे में अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहा है, ऐसे में अपने अस्तित्व के लिए यातायात से जुड़ी समस्याओं का समाधान ढूँढना अति आवश्यक है, साथ ही इस संदेश को देश के एक-एक नागरिक तक पहुँचाना जरूरी है। पर्यटन के दृष्टिकोण से भारत महत्वपूर्ण देश है। अतः पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अपनी धरोहर, संस्कृति,सूझ-बूझ, अनुशासन आदि सभी का विशेष रूप से ध्यान रखना होगा।सर्वश्रेष्ठ आबादी वाले देश में भारी तादाद में सड़कों पर चलने वाले लोग अगर यातायात के उचित नियम का पालन करने लगे तो देश विश्व की श्रेष्ठतम सूची में शामिल होगा। इसके लिए बचपन से ही स्कूली शिक्षा के दौरान बच्चों में यातायात के नियमों के प्रति शिक्षित किया जाना अति आवश्यक है, और साथ ही हम नागरिकों का दायित्व हमारी सरकार से भी ज्यादा है, क्योंकि हमारे निश्चय से यह अभियान अवश्य सफल हो पाएगा। सच तो यह है कि हम वो करने की बात कर रहे हैं जिसे बाकी देशों ने कई सदी पहले ही अपना लिया है।
एक फिल्म के संगीत की कुछ पंक्तियाँ याद आ गई – 
“ये मुम्बई शहर हादसों का शहर है,
यहाँ जिन्दगी हादसों का सफर है, 
यहाँ रोज-रोज, मोड़-मोड़ पर, 
होता है कोई न कोई हादसा।” 
बस अब और नहीं!
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