स्पिती वैली – चौथा दिन – ताबो

हिमालय की गोद में हिमाचल प्रदेश के स्पिती वैली की रोमांचक यात्रा – चौथा दिन।
नदी और बारिश के शोर को सुनते हुए हम सोने चले गए थे,सुप्त मन में एक चिंता थी कि आसमान खुला होगा कि नहीं क्योंकि मौसम विभाग के अनुसार आगे बर्फ गिरने की संभावना है, पर चौथे दिन की सुबह बिल्कुल साफ सुथरी चमकती नजर आ रही थी।
एक बात है कि पहाड़ों पर मौसम का कुछ अता-पता नहीं होता है, एक पल में ही सब कुछ अदल-बदल जाता है, उस दिन सूरज भगवान जी की कृपा प्राप्त हो रही थी,इसे हमारा सौभाग्य ही समझे,अब पहाड़ी रास्तों में कोई अवरोध आने की संभावना नगण्य दिख रही थी, पर रास्तों का क्या भरोसा होता है, पहाड़ों पर तो मौसम के साथ सड़कें ऊबड़-खाबड़, टूटी-फूटी खूब होती है,सरकार  बहुत काम कर रही थी पर ये पर्याप्त नहीं है, यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है, विशेषकर ड्राइवर यथासंभव कोशिश यही करता है कि सफर करने वालों को कम से कम परेशानी हो।
ये सारी समस्याएं गौण थी, क्योंकि जिस गाँव की ओर हम जा रहे थे, वो अप्रतिम था।
रास्ते में स्पीलो गांव में आलू पराठा, दही खाया और रात्रि के भोजन के लिए बूँदी के लड्डू भी लिए। थोड़ी – थोड़ी बारिश की बूंदे, तेज सर्द हवा, ख़ुशनुमा मौसम के साथ आगे बढ़े।
शाम चार बजे तक पहुँचे, हिमाचल प्रदेश का छोटा सा गाँव – ताबो।
जिसकी जनसंख्या करीबन साढ़े चार सौ, बेहद खुबसूरत और जिस होटल में रुके, वहाँ के लोग बहुत अच्छे एवं सहयोगी थे, घर जैसा अनुभव मिला, हमें गाँव के सारे दर्शनीय स्थल के बारे में उन्होंने जानकारी दी,उन्होंने सबसे पहले सुर्ख लाल, समान्य लाल एवं हरे सेब के फलों से लदे हुए ढेरों बाग दिखाए,लाज़वाब दृश्य था।
बड़े मज़े की बात है कि यहाँ कोई किसी के बाग से सेब नहीं तोड़ता है, कई सेब नालियों में भी गिरे पड़े दिखाई दिए, गुच्छे के गुच्छे सेबों को देख कर ऐसा महसूस हो रहा था कि काश सारे सेब अपनी गोद में भर कर घर ले जाऊँ, हिमाचल में सेब प्रकृति का वरदान है।
यह देश विदेश में पेटियों में बंद करके भेजी जाती है, व्यापारिक दृष्टिकोण से बड़ी आय का स्तोत्र है।
देव भूमि हिमाचल में अद्भुत नजारों की कहाँ कमी है, फिर देखा पहाड़ों पर कई गुफाएँ बनी हुई है,जिसमें कुछ एक हज़ार साल पुरानी भी है, कई यात्री ट्रैकिंग कर के उन गुफाओं के भीतर जाते हैं,दूर से ही बहुत  अद्भुत लग रहा था, आगे बढ़े पुरानी और नई मोनेस्ट्री देखने के लिए तो पता चला कि पुरानी मोनेस्ट्री के दो मुख्य पुजारी जी का एक्सीडेंट हो गया है, उनके जीवन रक्षा हेतु सारे लामा बौद्ध भिक्षु पूजा कर रहे हैं,गाड़ी का ड्राइवर और एक शिक्षक जो गाँव में पढ़ाने आ रहा था, वो स्पॉट खत्म हो गए थे, सुनकर हम ने भी ओम शांति की और पुजारी जी के जल्द ही ठीक होने की प्रार्थना की और नई मोनेस्ट्री देखने निकल पड़े,मोनेस्ट्री में बिजली का प्रयोग निषेध है, मोबाइल के टॉर्च से देखा, एक नया अनुभव हुआ हज़ारों साल पुरानी पेंटिंग जस की तस है,ग़ज़ब की बात है, ये हमारी प्राचीन धरोहर है, जिस पर हमें गर्व होता है।
यहाँ से हम ने हेलीपैड देखा, जो सरकार के द्वारा बनाया गया है, ये हिमाचल के कई जगहों पर भी बना हुआ है, गांवों में अप्रत्याशित घटनाक्रम के दौरान तत्काल प्रभाव से सहयोग किया जा सके, शायद उसी उद्देश्य से ही बनाया गया है।
शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे, शीत युद्ध चल रहा था, बारिश की बूंदे बार-बार तन को छू रही थी, बाज़ार भी बंद होने की तैयारी में थे, पहाड़ी दस बारह फर्र वाले कुत्ते हमारे इर्द गिर्द घूम रहे थे, सूर्य भी अस्त की तैयारी में लग गया था,लौट कर हम अपने होटल आ गए।
घर की तरह जुते बाहर ही उतारने की प्रक्रिया थी यहाँ पर, आकर चाय और कुकीज खाई और तब तक लाइट जल चुकी थी, छोटी-छोटी चीजों से सजावट करके इस होटल को बेहद रचनात्मक और दर्शनीय बना रखा था।
होटल के मैनेजर और स्टाफ सारे संग बैठ गए, आगे की यात्रा के लिए कई टिप्स दिए, सड़कों की, मौसम की जानकारी दी, जो हमारी आगे की यात्रा के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुई,शुद्ध शाकाहारी खाना बड़ा लज़ीज़ और स्वाद से भरा हुआ था, सफ़र में भोजन अच्छा और स्वादिष्ट मिल जाए तो फिर क्या कहने!
हमारी बातचीत, व्यवहार, मधुरता से वो अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने हमें बड़ा प्यारा उपहार दिया, वो क्या था आपको बताऊँगी मेरे अगले पोस्ट में।

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