सर पर खुला आकाश पांव ज़मीं पर, ठंडे पवन के मस्त झोंके ,तन पर गिरती टप-टप बारिश की बूँदों ने रोम-रोम को पुलकित किया और प्रेरित किया मनोरम दृश्य के कुछ सुंदर भावों को पन्नों पर अंकित करने का, वही आपके समक्ष लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्त कर रही हूँ।
स्वच्छता और हरित क्रांति से पूरी प्रकृति है आनंदमय, जिससे बनता है स्वस्थ और निरोग इंसान… स्वस्थता यानि रोग कम.. व्याधि नहीं तो खर्च भी नहीं, ऐसे में जोड़ तोड़ करने की जीवन में भागदौड़ नहीं… इससे है ठहराव, शांत, प्रसन्न मन… उपजता प्रेम, करुणा, स्नेह, ममता, अनुराग और बनता संतुष्ट जीवन… संतुष्टि से सरल, सहज, सौम्य व्यक्तित्व जहां शेष होता काम क्रोध मद लोभ घृणा ईर्ष्या…सद्गुणों से क्रिस्टल ग्लास की तरह साफ़ नज़र आता लक्ष्य और मिलती मानसिक शांति.. हृदय लबालब हो उठता परम आनंद से…
तो आइये देखते हैं जीवन से मृत्यु के सफ़र को..
स्वच्छता से स्वस्थता 
स्वस्थता से आनंद
आनंद से शांति
शांति से मोक्ष की असीम एवं अनन्त यात्रा…
ये आपके ही वश में है,आप अपने जीवन कैसा बनाना चाहते हो और कैसा देखना चाहते हो?