सीमन्तोन्न्यन संस्कार तीसरा हिन्दू धर्म का संस्कार है, जिसका मूल उद्देश्य गर्भ में पलने वाली संतान एवं माता की रक्षा करना, मानसिक बल प्रदान करना, सकारात्मक विचारों का प्रतिरोपण करना और प्रसन्नता का चित्त में समावेश किया जाना है।
चौथा, छ्ठा या आठवां पूजन हर जाति में प्रचलित है, यह गर्भपात को रोकने के लिए भी किया जाता है और हमने अपने जीवन में भी देखा है कि इन माह में अगर बच्चा गर्भ से बाहर आ जाए तो जीवित रहने के आसार नहीं बचते हैं, क्योंकि इस समय देह में इंद्र विद्युत प्रबल हो जाता है इसलिए इस संस्कार से बच्चे के जीवन को सुरक्षित रखने में सहयोग तो मिलता है, साथ ही गर्भ की शुद्धि भी होती है।
माँ के श्रेष्ठ चिंतन से संतान के मन, बुद्धि, संस्कार में नई चेतना जागृत होती है। पहले तो हमें ही यह तय करना होगा कि हमे कैसी संतान चाहिए, अगर आप दिल से चाहते हो कि आपको एक दिव्य संतान की प्राप्ति हो तो इन संस्कारों का मूल्य समझना ही होगा।
इस संस्कार की पूजा विधि में पति अपने पत्नी के केशों को सँवार कर उपर की ओर उठाता है, मांग में सिंदूर भरता है। इस संस्कार में घी और खिचड़ी खिलाने का विधान बनाया गया है।यह तो सिर्फ पूजा कराने के लिए अनुकूल विधि है।
सौभाग्य प्राप्त करने के लिए एक बात तो तय है कि माँ के आसपास का वातावरण, खानपान, क्रिया कलाप, स्वभाव, दैनिक चर्चा, रुचि,बर्ताव इत्यादि से ही बच्चे का गुण, कर्म, स्वभाव निर्मित होता है, इसलिए जन्म के बाद अपने बच्चे को दोष देने के पहले ये अवश्य विचार करे कि हमसे कहाँ भूल हो गई! क्योंकि जो बोया है सो ही पाएगा।
आज इन संस्कारों की चर्चा और समझ-बूझ से आने वाले भविष्य को अति उत्तम बनाया जा सकता है।