सर्द हवाएं

पुस की अंधेरी रात सर्द हवाएं यादों में लेखक मुंशी प्रेमचंद
इंसान और पशु प्रेम का भाव सजाती ये कथा पहली पसंद
कहानी का नायक हल्कू और जबरू कुत्ते के रात्रि का संघर्ष
मार्मिक कथा काव्य में रूपांतरित कर हुआ हृदय को स्पर्श
पैसों की तंगी जमीनदार की धौंस जमा तीन रुपये भी देने पड़े
दीनता के भार से दबा किसान जिल्लत मज़बूर जीवन से जुड़े
बेमिसाल दोस्ती दर्द की दास्तान बनी वो रात और सर्द हवाएं
खेत में चीरती वो जाड़े की रात बिना कंबल कोई सह न पाए
बाँस का खटोला चादर में कंपकंपाती देह घुटने गर्दन चिपके
खाट के नीचे कूं कूं करता जबरा आसमानी तारे ठिठुर सिमटे
बैचैन हालातों से जुझ कर करवट ले रही दो ज़नों की ज़िंदगी
एक दूजे के संग दैहिक एहसासों से मिली सुख की अनुभूति
न घृणा थी न मन में द्वेष था जीव प्रेम स्नेह का बस संदेश था
पशु को गले लगा कर पारलौकिक अंतरिम दिया उपदेश था
पवित्र सोच अनोखी मैत्री ने खोले चिर आत्मा के अद्भुत द्वार
सर्द हवाओं के संग बिखरा अणु प्रकाश का नवजीवन संचार।

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