संस्कारों की एक पहल

संस्कार कोई किताबी ज्ञान नहीं है, न ही पेड़ों पर उगता है बल्कि यह बचपन से ही माता-पिता, शिक्षक, समाज और आसपास के वातावरण से सृजित होता है। संस्कार हमारे आचरण से, व्यवहार से और सद्कर्मों से बनते हैं।माँ – बाप तो सारे ही अच्छे हैं और सभी अपने बच्चों को अच्छा संस्कार देने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं, फिर समस्या कहाँ है? यहाँ के हर नागरिक को संस्कारी होना चाहिए, फिर वर्तमान परिवेश में संस्कारों की धज्जियाँ क्यों उड़ रही है?कहाँ भूल हो रही है? शायद इसकी सबसे बड़ी वजह है पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ता हमारा रुझान, माँ बाप का स्वयं पर केंद्रित जीवन, संस्कार देने के लिए समय का अभाव, एकल परिवार की वजह से जिम्मेदारी का अधिक बोझ , रिश्तेदारों से ज्यादा हमउम्र दोस्तों के साथ अत्यधिक समय बिताना ऐसे कई परिस्थितियों के सम्मिश्रण ने संस्कार के ग्राफ को उतार कर रख दिया है।मैं मानती हूँ कि इन तथ्यों को नकारा नहीं जा सकता है।
बच्चों से समाज और देश का भविष्य है और संस्कारों की नींव को बचपन से ही इतनी मजबूती और दृढ़ता के साथ रोपित किया जाना चाहिए कि बच्चा किसी भी परिस्थिति में डगमगा कर अपने संस्कारों की धज्जियाँ न उड़ाये।छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने से बड़े-बड़े संस्कार को जीवन में शामिल होने का रास्ता मिलता है।अपनी दिनचर्या में सुबह उठते ही अपनी हथेलियों का दर्शन, धरती माँ को स्पर्श और अपने घर के बुजुर्गों या माँ-बाप को प्रणाम करना,ईश्वर का नमन करके स्कूल जाना इत्यादि दिन के शुरुआत से ही सबसे पहले नाजुक और कोमल संस्कार को जन्म देते हैं। प्रत्येक बच्चा कच्ची मिट्टी के समान होता है, उसे जैसा चाहे वैसा ढाला जा सकता है। जितनी शिद्दत, मेहनत और ईमानदारी से उस पर काम किया जाएगा उसका ढांचा वैसा ही तैयार होगा। उदाहरण के लिए आम तौर पर आपके पास फोन आया, जिसमें आपको बात नहीं करना है,आपने होते हुए भी कह दिया, बोल दो नहीं है, नतीज़ा आपके लिए तो बहुत ही छोटी सी बात, पर आपके बच्चे के अंतर्मन पर एक झूठ बोलने के संस्कार की परत चढ गई, सद्गुण संस्कारों के लिए ऐसे हजारों सुधार की प्रक्रिया आवश्यकता है और इसी से बनता है हमारा जीवन चरित्रवान और सदाचारी।
कुसंस्कार से सिर्फ हमारा चारित्रिक पतन ही नहीं अपितु समाज का भी विनाश होता है। प्राचीन संस्कारों में शराब पीना कुसंस्कार माना जाता था और आज  अधिकतर स्थानों पर इसे स्टैटस सिम्बल मानने लगे हैं,आधुनिकीकरण या यूँ कहें कि आधुनिकता की परिपाटी में हम लिपटते जा रहे हैं,इसलिए संस्कार की परिभाषा ही बदलती जा रही है।यह प्रकृति चलायमान है, परिवर्तन होना स्वाभाविक है, जिसे आप छोड़ते हैं उसे दूसरा पकड़ लेता है यही कारण है कि हम पाश्चात्य संस्कृति की ओर रुख कर चुके हैं और पश्चिम देश के लोग हमारी ओर। भारतीय संस्कृति संस्कारों से युक्त बहुमूल्य निधि है। किसी सर्वे से पता चला है कि पश्चिमी देश हमारी संस्कृति पर गहन अध्ययन भी कर रहे हैं, हमारा पहनावा, रहन-सहन, खान-पान, योग-साधना इत्यादि और हमारी इस बहुमूल्य एवं महान संस्कृति को अपनाने के लिए आतुर होने लगे हैं। हममें और उनमें बस फर्क़ इतना है कि वो हमारी संस्कृति की गहन अध्ययन करने के बाद हमारा अनुसरण कर रहे हैं और हम बस मात्र बदलाव की मांग के कारण परिणामों की चिंता किए बिना ही उन्हें फोलो कर भटकने लगे हैं,अपने जीवन के सभ्याचार और मंगलाचार को छोड़ना चाहते हैं।
मेरा अंतर्मन यह कहता है कि पाश्चात्य संस्कृति को पाने के लिए आज हम उनका अनुसरण कर रहे हैं और भविष्य में अपनी भारतीय संस्कृति को पुनः प्राप्त करने के लिए फिर से उनका अनुसरण  करने की कोशिश कर रहे होंगे।
बस एक पहल करनी होगी अपने ही घर से अच्छे शिष्टाचार, तहज़ीब, सभ्य भाषा, धार्मिक परंपराओं के मूल्यों को समझने की और समझाने की,बहुमुखी बहुआयामी संस्कृति को सुरक्षित रखने की।
स्वामी विवेकानंद ने विदेशों में भी अपनी संस्कृति का परचम लहरा कर अपनी जन्मभूमि से जुड़ी मिट्टी से मिले संस्कारों को सबको समझाया और वापस वक्त आ गया है स्वयं को समझाने का। अभी कुछ कदम ही तो चले हैं उस रास्ते की ओर, जो हमारे लिए उपर्युक्त नहीं है ,आओ लौट चलते हैं फिर से अपनी महान भारतीय संस्कृति, सभ्यता और विरासत की ओर!
कल बनाना है,
संस्कार बचाना है,
परंपरा प्रतिष्ठा अनुशासन, 
सीखना और सिखाना है।

1 Comment

  1. धन को एकत्रित करना सहज हैं !
    लेकिन
    संस्कारों को एकत्रित
    करना कठिन हैं !
    धन को तो लूटा जा सकता हैं
    लेकिन
    संस्कारों के लिए समर्पित
    होना पड़ता है ।

    एक पहल ने संस्कार के प्रति अपने गहन विचार रखे जो आज के इस परिवेश में अत्यंत आवश्यक है।
    अच्छे संस्कार एक सफल जीवन के लिए अति आवश्यक है। अच्छे संस्कार की जननी माता पिता है। ईश्वर के प्रति आस्था , माता पिता के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेना तथा अपने गुरुजनो का आदर सम्मान करना अच्छे संस्कारो की जड़ है।
    भारतवर्ष जहां प्रभु राम कृष्ण ने अवतार लिया जहां बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने जन्म लिया उस धरती पर संस्कार न हो ऐसा हो ही नही सकता। भारतवर्ष संस्कारो का कुंज है। हमारी परंपरा जैसे हाथ जोड़ना,ताली बजाना,चरण स्पर्श करना ,आसान पर बैठकर पूजा करना,पालकी मारकर भोजन करना इत्यादि अच्छे संस्कार तो देती है साथ ही हर क्रिया विज्ञान से भी जुड़ी है। आज पाश्चात्य जगत इस ओर आकर्षित है और हम इससे विमुख हो रहे है ।
    हमारी संस्कृति ही हमारी सबसे बड़ी धरोवर है ।
    याद रखे कुसंस्कार हमे अपनी वास्तविक पहचान से विमुख कर देता है।
    जय श्री कृष्ण

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