संस्कारों का बोझ

 


किसने कहा युवाओं में संस्कार नहीं होते
शायद हमसे ही कई उपकार नहीं होते
कहते हैं युवा पीढ़ी संस्कार खोने लगी है 
सच है हमसे परवरिश में भूल होने लगी है।

आक्षेप तो हर पीढ़ी ने पीढ़ी को दिया है
पर वृक्ष के इस बीज़ को किसने सृजन किया है
जब तक स्वयँ को नहीं सुधारोगे
संस्कारों के फल कहाँ से उपजा पाओगे!

सर से तुम्हारे शर्म का पल्लू गिर गया है
संस्कारों का बोझ दिल से उतर गया है
जब तुम इसे निभा नहीं पा रहे हो
फिर ये उम्मीद किस से लगा रहे हो! 

क्लब, पार्टी, पब में ठुमका लगा रहे हो
युवा पीढ़ी को दोषी बना रहे हो
एक बात तय है बच्चे वही करते हैं
जो आप को देख कर सीखते हैं।

माँ-बाप को छोड़ अपना घर बसा रहे हो
संस्कारों को तुम ख़ुद से ही मिटा रहे हो
बदलो, अगर तुम बदलाव चाहते हो
मत भूलो अपनी संस्कृति,अगर संस्कार चाहते हो।
 

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