फ़ितरत थी साँप की चंदन से लिपटते रहे तन की गर्मी को ठंडक देते रहे। महफ़िल में ओढ़ मुखौटा नफ़रत करते रहे दोस्ती का नाम देकर दुश्मनी करते रहे। रिश्तों की दुकान पर ख़ुद ही बिकते रहे जब-जब करीब गए फन से डसते गए। इंसानों की बस्ती में जानवरों से बनते रहे आस्तीन के साँप थे जहर उगलते रहे।
2019-10-29