समीक्षा एक समान्य अवधारणा है। भविष्य के निर्णय, योजना और विश्वसनीयता के लिए समीक्षा की आवश्यकता होती है।
समीक्षा भरे हुए जल के ऊपरी सतह का निर्धारण करता है। यही समीक्षा जब व्यापक और विश्लेषणात्मक होती है तो आलोचना में परिवर्तित हो जाती है। समीक्षा का विच्छेद सम्यक इच्छा।
पाठकों को किसी वस्तु या विषय स्थिति को समझने की सहूलियत के लिए समीक्षा की जरूरत होती है यानि कि (review) उदाहरणार्थ हम किसी भी रेस्तरां में ऑनलाइन खाने की विस्तृत जानकारी के लिए उसकी कस्टमर द्वारा दी गई समीक्षा पर नज़र डालते हैं और उसी के अनुसार उसका चयन करते हैं और खाने का ऑर्डर देते हैं वैसे ही किसी पुस्तक की समीक्षा से उसका समान्य परिचय, विषय, भाषा, महत्व, लेखक का नाम, प्रकाशन, प्रकाशक एवं मूल्य की जानकारी मिलती है।सिनेमा जगत में समीक्षा और आलोचना का विशिष्ट स्थान है, उसी के आधार पर दर्शक फिल्म देखने जाते हैं।बदलाव और परिवर्तन के चक्र के लिए समीक्षा उपयोगी है। समीक्षा से अवसर प्राप्त होते हैं।
स्व-समीक्षा सुधार की गतिविधि का हिस्सा है जैसे मैंने प्रतियोगिता में भाग लिया, प्रथम स्थान पर नहीं पहुँच पाई, ऐसे में समीक्षा करना लाभप्रद होता है, जिससे जो गलतियाँ या कमियाँ रही उसे सुधारा जा सकता है।
वर्तमान समय में समीक्षा का महत्व बहुत बढ़ गया है क्योंकि डिजिटल और सोशल मीडिया की वजह से खरीददारी जैसी हर क्रिया ऑनलाइन होने लगी है, ऐसी स्थिति में आपको सिर्फ और सिर्फ समीक्षा से ही जानकारी प्रदान होती है और उसी के आधार पर विश्वसनीयता बनती है।
कार्यो की प्रगति के लिए बड़ी-बड़ी स्कूल, कॉलेज, संस्थाओं, दफ्तरों में बैठक की जाती है। समीक्षा प्रबुद्धता का दूसरा स्वरूप है, इससे अधिकार भी स्पष्ट होते हैं साथ ही समुचित समाधान भी मिलते हैं।
किसी ने क्या खूब लिखा है कि जीवन में तीन बातें महत्वपूर्ण है – प्रतीक्षा, परीक्षा और समीक्षा
परीक्षा संसार की
प्रतीक्षा परमात्मा की
और समीक्षा अपनी करनी चाहिए।
और समीक्षा अपनी करनी चाहिए।