साहित्य समाज का दर्पण जीवन की है आलोचना सत्य शिव सुंदर से तर्पण लोक मंगल की कामना साहित्य हम सबकी प्रेरणा संस्कृति हमारी है पहचान अपनी लेखनी को सहेजना राष्ट्र की है आन बान शान समाज का कर मार्गदर्शन साहित्यकार जलाते मशाल चिराग़ आलोकित प्रदर्शन प्रतिबिंबित करते विशाल काग़ज पर उकेर कर भाव समाज का दिखता वर्तमान आशा निराशा दुख सुख का परोसता और करता आह्वान कभी ओज कभी शोषण का चित्रण कर प्रवृति का उदय कभी भक्ति कभी श्रृंगार का कर्तव्य बोध होता साहित्य साहित्य में समाज की अपेक्षा उत्साह हर्ष हताशा अवसाद सूरज भी जहां तक न पहुँचा कभी प्रमाद कभी रहता याद साहित्यकारों की भूमि भारत लेखक कवि हृदय में बसते है ज़न ज़न के दिल पर प्रहार कर नव चेतना का संचार करते है।
2021-02-26