साधना मन की मुक्ति है, व्रत तन की शक्ति है और उपवास तन और मन दोनों की शुद्धि है।नवरात्रि पर इन तीनों का बड़ा महत्व है क्योंकि नवरात्रि आत्मनिरीक्षण और शुद्धि की अवधि है।
साधना – जिज्ञासा मन के अंदर की उत्पत्ति है, इसे बाहरी दुनिया में ढूँढना तो मूर्खता है साथ ही हमारे मन में भरे अवरोध और नकारात्मक भावों को सिर्फ साधना द्वारा मुक्त किया जा सकता है।मृत्यु से अमृत्यु की ओर, असत्य से सत्य की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने के लिए सटीक मार्ग साधना है। साधना से आपका जीवन आनंदित हो उठेगा,अंत काल में एक ही भाव उठेगा कि आपको भव्य जीवन की प्राप्ति हुई है। एक साधारण व्यक्तित्व कब असाधारण बन जाता है, कोई नही समझ पाता है। नवरात्रि के दौरान की गई साधना आपके अंतर्मन को मुक्ति के मार्ग बड़ी जल्दी प्रशस्त करती है।
व्रत और उपवास – प्राचीन काल से धर्म ग्रंथों के अनुसार मानव कल्याण हेतू सुख की प्राप्ति के लिए और दुख के निवृत्ति के व्रत और उपवास का प्रावधान बनाया गया है। पाप का नाश और पुण्य की प्राप्ति के लिए व्रत और उपवास किया जाता है, जिसमें अल्प भोजन या बिना जल के रहा जाता है। यह तो हुई धर्म की बात पर शारीरिक तौर पर देखा जाए तो दिन भर पेट के अंदर चलने वाली मशीन को कभी-कभी विश्राम की आवश्यकता होती है इसलिये व्रत और उपवास करते हैं। हमारे देश में खाद्य उत्पत्ति की पैदावार जनसंख्या के मुकाबले कम है, ऐसे में लाखों लोगों को भूखे ही सोना पड़ता है, ऐसे में देश की कुछ समृद्ध जनसंख्या उस रोज के व्रत और उपवास करने वाले यानि भूखे रहने वाले लोगों के लिए मददगार भी साबित होती है, जिससे उन तक भोजन पहुंच पाता है। हमें शारीरिक संरचना और ऋतुओं के अनुसार श्रद्धापूर्वक व्रत और उपवास करना चाहिए, परंतु अगर किसी गहन बीमारी से पीड़ित हैं तो इसे अति आवश्यक न समझना ही उचित होगा। व्रत और उपवास के आचरण से मनोकामना सिद्ध होती है, देवता प्रसन्न होते हैं, सुखों की प्राप्ति होती है पर जब तक आपकी देह आपको इजाज़त देती है तभी तक ही इसका पालन और आचरण लाभदायक है।