बसंत ऋतुओं का राजा, कहलाता ऋतुराज, फ़िजा में फूलों की खुशबू,मादकता का अंदाज। कल-कल करती नदियाँ,प्रकृति की अद्भुत छटा, चाँद की चाँदनी ठंडी हवाएँ, रखती मन तरोताजा। नई स्फूर्ति, नया मंजर, नया सबका उल्लास, तितली भँवर कर गुंजन, नई खुशियों का आभास। पीली हल्दी, पीले हाथ, पीले पहनते परिधान, विवाह के उत्सव से सजता,नृत्य करता जहान। सम जलवायु,सुखद बदलाव,अंखियाँ होती तृप्त, नवजीवन का संकेत लिए,मौसम होता मदमस्त। श्री कृष्ण संग रास रचाती,राधा रानी कर श्रृंगार, मोहक बसंत ऋतु में होता,नव उत्साह का संचार। लहलहाती फ़सल,खुशी से झूम उठता किसान, सरसों, टेसु, आम भरता,खेत और खलिहान। होली के चपल कदमों की आहट,मंत्रमुग्ध करता मन, नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर,बसंत ऋतु का स्पन्दन। माँ सरस्वती को नमन,यह रचना उनको है समर्पित, विद्या, बुद्धि, ज्ञान की देवी,ये ऋतुराज आपसे शोभित। ऋतुराज बसंत प्रकृति का अनुपम उपहार है, आरोग्य, आनंदित, चिरयुवा जीवन,यह शुभकामना बारंबार है।
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