राजाओं की नीति है राजनीति!
ऐसी नीतियाँ जिनसे राज्य का प्रशासन किया जाता है। राज – सत्ता में स्थान प्राप्त करने की जोड़ – तोड़ की कला ही राजनीति का स्वरूप है। राजनीति समाज के संगठित जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रियान्वयन है, जिसका सीधा संबंध राज्य और सरकार से रहता है, इसमें कार्यपालिका, न्यायपालिका, संसद आदि औपचारिक राजनैतिक संस्थाओं का समावेश रहता है। राजनीति का अंग्रेजी पर्याय होता है ‘पॉलिटिक्स’ और यूनानी भाषा में ‘पोलिस’, जिसका अर्थ है समुदाय, जनता अथवा समाज।
उचित और स्वच्छ राजनीति कुर्सी की इज़ाद करती है, वह कुर्सी के लिये लड़ती या छीनती नहीं है अपितु स्वयं कुर्सी भी ईमानदार राजनेता की मांग करती है। “एक पहल” परिवार, समाज और देश के उन तमाम पहलुओं पर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करता है, जिससे हमारे जीवन में हो रही घटनाओं का सही रूप से आंकलन कर सके। गौर से देखा जाए तो राजनीति की शुरुआत हमारे अपने ही घर से शुरू होती है, हमने अपने खून में ही इसका संचार कर लिया है। जब से जन्म हुआ तब से ही राजनीति में प्रवेश हो गया।
राजनीतिक भाषा की रचना भी बड़ी मायावी है जिसमें झूठ को सच बताया जाता है और सच को दफन कर दिया जाता है। सुन्दर मुखौटे के भीतर छिपा घिनौना हृदय, जो द्वेष, ईर्ष्या, नाराज़गी से भरा हुआ, सामने मीठी बातें और अंदर छप्पन छुरी जैसे विकृत योजनाएं जो आपको बर्बाद कर दे, ऐसे दोहरे व्यक्तित्व को चरितार्थ करने वाले विचारों का रूप बन चुकी है आज की राजनीति! यहाँ कोई संबंधी नहीं होता है। विष का वह घड़ा जिसकी ऊपरी सतह पर सिर्फ दूध नज़र आता है। घर की राजनीति के जाल में हमारा जीवन कैसे फंसता जाता है उसे ज़रा समझते हैं, जहाँ संवाद कम वहाँ राजनीति बड़ी गहरी होती है, जैसे कि एक रिश्तेदार दूसरे रिश्तेदार से संवाद नहीं करता है, इस परिस्थिति में तीसरा आदमी आपके भरोसे का पूरा फायदा उठाता है, रिश्तों में खाई बढ़ाने में पूर्ण रूप से मदद करता है, संवाद कम, सच से दूरी और सूझबूझ की कमी से जीवित रिश्ते मृत समान बन जाते हैं, जर्जर और खोखले हो जाते हैं। राजनीति सदैव कच्चे मन और कमजोर समझ पर वार करती है। हम सबने सुना है कि दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर फायदा उठा लेता है। तुम अगर न चाहो तो कैसे कोई तुम्हें बरगला सकता है? क्यों तुम्हारी जिंदगी में ज़हर बो सकता है! राजनीति का शिकार क्यों बनना है तुम्हें? आज हर कोई असंतुष्ट है, क्योंकि अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठोगे तो ही जीवन में पूर्णता मिल पायेगी। वहीं दूसरी ओर ज़रूरत से अधिक संवाद आपको दिशाहीन कर देते हैं अतः सही और गलत को समझने के लिए जागरूक बनना होगा। विंस्टन चर्चिल ने कहा है कि युद्ध में आप एक ही बार मारे जा सकते हो, पर राजनीति में कई बार मरते हो। राजनीति दरअसल दिल का नहीं वरन् दिमाग और महत्वाकांक्षाओं का खेल है जिसका सीधा और गहरा संबंध धन, ऊंचे ओहदे और मान-सम्मान से जुड़ता है, इसके लिए चापलूसी करना सबसे सरल मार्ग है और अगर अदम्य साहस होता है तो विद्रोह की भावना उजागर होती है और विपक्ष की राजनीति कर पाते हैं, आपके विचारों के अनुसार लोग आपका साथ देते हैं परंतु यह सत्य है कि यहाँ बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है।
परिवार की राजनीति से चलते हैं शिक्षा की राजनीति में, जहाँ एडमिशन से शुरू होकर क्लास के मॉनिटर और लीडर बनने तक राजनीति शुरू हो जाती है। सही पूछो तो शिक्षक और शिक्षिकाएं भी कहाँ कम हैं! उन्हीं बच्चों पर विशेष रूप से मेहरबानी, जो उनके आगे – पीछे चमचागिरी को तैयार हैं, ऐसे में कर्तव्य और संस्कार से ऊपर निजी स्वार्थ आड़े आता है। जैसे जैसे आप उच्चतम शिक्षा की ओर बढ़ते हो, स्कूल में लीडर से विश्वविद्यालय की नेतागिरी तक के सफ़र में राजनीति गहरी होती जाती है। उदाहरण के लिए क्लब हेड या विश्वविद्यालय के सर्वोच्च पद के लिए श्रेष्ठतम छात्र-छात्रा को पीछे धकेल कर किसी ऐसे छात्रों को शिक्षक का साथ मिलता है, जिनके पास या तो वोट बैंक है अथवा नीचे स्तर तक जाने का दुर्गम साहस है और यहीं से हत्या होती है काबलियत और ईमानदारी की। शिक्षक और स्टूडेंट्स में जोड़-तोड़ की राजनीति जिसमें जो हारता है वो आँसू बहाता है और जो जीतता है वो अपने आपको दुनियां का सबसे खुशकिस्मत इंसान समझता है, पर सच तो यह है कि इस खेल में दोनों ही हारे हुए हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी देश के पतन की वजह उस देश का युवा होता है, जो यह कहता है कि राजनीति दरअसल कीचड़ की तरह है तो ऐसे में उसे साफ करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर है। राजनीति का वास्तविक स्वरूप यह होता है कि इतिहास के लिए सम्मान, वर्तमान में हमारे कर्तव्य व नैतिक मूल्यों से भरा जीवन और आने वाली पीढ़ी के प्रति पूर्ण जिम्मेदारी।
राजनीति देश का सबसे ताकतवर मंच है। भ्रष्टाचार और अत्याचार से त्रस्त इंसान जब असहाय हो जाता है, तब असामाजिक तत्वों से लड़ने के लिए स्वयं को मन से शक्तिशाली और तन से बलशाली बनाता है और निर्भीक होकर राजनीति में प्रवेश करता है। अब मज़े की बात यहाँ देखने को मिलती है कि जिस हालात से वह त्रस्त था, उसी में ग्रस्त हो जाता है। यहीं राजनीति हमें गुलाम बनाती है तो यहीं हमें आज़ादी भी दिलाती है। राजनीति में कोई अपना रिश्तेदार नहीं होता, सारा खेल सपने, निजी स्वार्थ और महत्वाकांक्षाओं का है, जो मष्तिष्क पर इतनी हावी होती हैं कि माँ अपने बेटे को इस क्षेत्र में अपने सपने के लिए झोंक सकती है तो अपने लक्ष्य के आड़े आने पर उसे मरवा भी सकती है। बेटा बाप का सगा नहीं, बाप बेटे का सगा नहीं, इससे खतरनाक और रोमांचक खेल विश्व में और कोई नहीं! भ्रष्ट नेता खरीदे हुए हत्यारों से भी अधिक खतरनाक होते हैं। देश और समाज के उन्नति एवं विकास को अवरुद्ध करने का एकमात्र कारक है गंदी राजनीति। घुमाओ, फिराओ, सपने दिखाओ, खिलाओ, पिलाओ, ऐश कराओ, वोट बैंक आपका बन जायेगा, बस और क्या चाहिए! कुर्सी के साथ भ्रष्टाचार अपने आप ही जुड़ जाता है, बुरी वृत्तियाँ उभर जाती हैं क्योंकि यह दोनों एक दूसरे के पूरक है। जो ईमानदार नेता है, वो करे भी तो क्या करे, पूरा माहौल हो ऐसा है कि काजल की कोठरी में कालिख से बचना सबके लिए नामुमकिन है। अच्छे समाज प्रतिनिधि या नेता की सोच देश के उत्थान में सहयोग देने के लिए जन – मानस को प्रेरित करती है, उनसे प्रभावित हो कर प्रत्येक नागरिक किसी न किसी अभियान से जुड़ जाता है, समाज और देश को सकारात्मक योगदान दे पाता है, वहीं दूसरी ओर बुरी सोच भोली-भाली जनता के मानवीय संवेदनाओं के साथ खिलवाड़ करती है और निजी स्वार्थ के चलते जनता को लाचार और बेरोजगार जीवन जीने को मजबूर करती है, इसकी वजह से लाखों की संख्या में लोगों की मौत हो जाती है, तभी तो कहते हैं कि हमारा चयन कितना महत्वपूर्ण है।
हाल ही में संजय लीला भंसाली द्वारा निर्मित रिलीज़ हुई एक फ़िल्म ‘पद्मावत’ जिस पर गहरी राजनीति का साया मंडराया, उसी फ़िल्म के एक दृश्य में राजनीति के दृष्टिकोण को बेहद खूबसूरत तरीके से पेश किया गया। अलाउद्दीन खिलजी का रानी पद्मावती के प्रति प्रेम-वासना और उसे पाने की चाह, युद्ध के लिए प्रेरित करती है, सैनिकों का हतोत्साहित होकर जाने का निश्चय, उसी समय खिलजी समुदाय का झंडा सैनिकों के ऊपर गिरा देना और अपने समुदाय के मान-सम्मान के लिए सैनिकों का युद्ध के लिए फिर से आह्वान, वहीं दूसरी ओर खिलजी के चरित्र में अभिनय करते अभिनेता रणबीर सिंह का किरदार, जिसमें भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाने की खुशी का चित्रण मानो राजनीति को पूर्ण पारदर्शी बना देता है। यूँ देखा जाये तो सच्ची और विशुद्ध फिल्में राजनीति पर नहीं बन पाती हैं क्योंकि जो आज़ादी अभिव्यक्ति के लिए चाहिए वो हमारे देश में नहीं है। राजनीति में इतना आकर्षण है कि सिल्वर स्क्रीन के हीरो – हीरोइन भी इस क्षेत्र से अछूते नहीं रहे हैं।
देश में राष्ट्रीय मूल्यों की कमियों ने एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया है जो भारत देश को हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई के जातिवाद के साथ उच्च और निम्न जाति की राजनीति में आपस में बंटते हुए देखना चाहता है और इस लड़ाई की आग में अपनी रोटी को सेंकना चाहता है। सीधी सी बात है राजनीति का धर्म करें न कि धर्म की राजनीति! भारत की धर्मनिरपेक्ष ताकतें बौद्धिक और राजनैतिक रूप से सदैव जुड़ी रही है और लोगों में चेतना भी जागृत की है पर जनता हमेशा भुनाई जाती रही है।
राजनीति का सीधा संबंध बेहतरीन और साहित्यिक शब्द, अच्छी वाक् शैली और धाराप्रवाह भाषण, जिसके द्वारा आम जनता का मंत्र मुग्ध हो जाना परंतु आज भाषा का स्तर विकृत होने लगा है, इसके लिए जिम्मेदार है मीडिया, टीवी चैनल जिन्होंने ऐसे हालात बना दिये हैं कि जितने ऊँचे और तल्ख स्वर उतना बड़ा नेता, जितनी मानहानि कर सको उतना सफल नेता , टीआरपी बढ़ाने के लिए और कहाँ तक स्तर पहुंचेगा! सच तो यह है कि हर कोई रातों रात स्टार बनना चाहता है।
हमारे पुराने ऊर्जावान स्वामी विवेकानंद, माँ सरस्वती के आराधक ने अमेरिका में भाषण दिया तो वहाँ के लोग कई देर तक तालियाँ बजाते रहे क्योंकि वर्तमान हालात को बयाँ करते वक़्त दिल और दिमाग से उपजे शब्दों का मेल कमाल का था, जिसकी वजह से हिन्दुत्व को बल मिला और उसने टॉनिक की तरह काम किया, वहीं सुभाष चंद्र बोस की आवाज़ को रेडियो में सुनने के लिये पूरे भारतवासी बेताब होते थे, बंगाली भाषा, हिन्दी कमजोर पर भाव देश को गुलामी से मुक्त कराने का, जनता से भारी जुड़ाव का कारण था। आज के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की साहित्यिक शैली के साथ मंथन करने वाले शब्दों का प्रयोग, ठहराव और मंत्र मुग्ध करने वाले भाषण ने राजनीति के सदैव बौद्धिक स्तर पर रखा है वहीं आज के एक और बेहद लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी सामान्य एवं संजीदगी से अपनी बात प्रस्तुत करने वाले नेता बने हैं, उनके भाषण से जन-जन प्रेरित होकर नये ख्वाब बुनने लगता है। राजनीति में सैंकड़ों लोगों के बीच व्याख्यान देना हर किसी के बस की बात नहीं है। लाल कृष्ण आडवाणी ने अपने लेख में इस कॉम्प्लेक्स का जिक्र भी किया है।
राजनीति के विषय में बहस करके निजी संबंधों को खराब करना कौन सी समझदारी का परिचय है! घर से समाज, समाज से देश, देश से विदेश की राजनीति का सफ़र प्रत्येक नागरिक के अटूट प्रयास, स्वस्थ और स्वच्छ मानसिकता से ही संभव हो पायेगा। अपने स्वार्थ से ज्यादा जनता के हित को प्राथमिकता देनी होगी। हम सब शुरुआत करें तो यह सपना ही नहीं, हकीकत बनेगा। शिक्षा ने जागरुकता दी है, षड्यंत्रकारियों से बचना है और घर से शुरू होने वाली स्वार्थ की राजनीति को विराम देना है। आज का युवा वर्ग समाज सेवा और देश भक्ति के संकल्प को लेकर राजनीति में प्रवेश करें तो निश्चित तौर पर भारत माता को पुनः विश्व में सर्वोच्च स्थान दिला सकता है।
India is the richest country in the world inhabited by poor people and dirty politicians.
स्वच्छ राजनीति के लिए अपनी सोच का विकास करना होगा।
आप सही कह रहे हैं।
ये दुनिया इसलिये बुरी नही की!!!
यहां बुरे लोग ज्यादा है !!!
बल्की इसलिए बुरी है की !!!
यहां अच्छे लोग खामोश है!!!
राजनीति की शुरुवात कहा से?
पहल लेखिका ने इसका विस्तृत वर्णन किया है। बहुत मेहनत की होगी इसके लिए।
हार्दिक अभिनंदन ।
भारतवर्ष के इतिहास पर नजर डाले तो इतिहास कहता है कि पहले भारत मे राजा लोग राज करते थे तत्पश्चात उनके उत्तराधिकारी राज सिहासन पर बैठते थे।राजा का फरमान प्रजा को पालन करना पड़ता था।तब राजनीति का प्रश्न नही था हा रणनीति कारगर थी।
अंग्रेजो के शासन में भारतवासी गुलामगिरी के आगोश में समा गया।
15 अगस्त 1947 को कई शहीदो की कुर्बानी के पश्चात देश आजाद हुआ।भारत का नया संविधान बना। और यही वो वक्त था जब राजनीति ने जन्म लिया।राजनीति की अगर परिभाषा की जाय तो हम कह सकते है कि नियम के अनुसार राज (शासन) का संचालन करो। अफसोस कि राजनेताओ ने इसका गलत उपयोग किया।
भ्रष्ट नेताओं ने धन,जाति एवम धर्म के नाम पर वोट बैंक बनाने की कवायत को राजनीति का स्वरूप दिया।राजनेताओ ने गलत राजनीति अपनाकर देश को लूटा ओर भारतवासियो को कर्जदार बना दिया।
भारत में अधिकतर गाव थे जहाँ किसान खेती कर अपना जीवनयापन करते थे।राजनीति के चलते अमीर किसान नेता बनकर और अमीर होते गए ओर गरीब लोगों को कभी भी गरीबी से ऊपर उठने नही दिया।
स्वार्थपरस्त नेताओ ने जाती धर्म की राजनीति करते खाओ ओर खाने दो की नई परंपरा आरम्भ की।
अंगूठा छाप,भ्रष्टाचारी,अपराधी तत्व के नेताओ की भरमार होने लगी।चुनाव के समय जो आपके सामने हाथ जोड़ कर वोट की भीख मांगते नजर आते वो चुनाव के पश्चात आपके सामने खड़े रहना भी अपना तिरस्कार समझते।
भ्रष्ट राजनीति ने शिक्षा समाज व खेल जगत में अपने पैर पसारने शुरू किये
परिवार में भी भाई भतीजा विवाद शुरू होने लगे।
अगर हम पुराना ज्यादा नही 20-30 साल पुराना परिवारों का इतिहास देखे तब घर का जो मुखिया होता था उसी के आज्ञा का पालन करते हुवे पूरा परिवार हंसी खुशी से रहता था। देश की राजनीति हम दो हमारे दो से आज परिवार एकल परिवार में तब्दील हो गए। आजादी के बाद जंहा हिन्दू 82% ओर मुस्लिम 6% थे 2017 कि जनगणना के अनुसार हिन्दू 62% एवम मुस्लिम 27% हो गए।ये सब देश की गलत राजनीति के कारण हुआ।
66 साल से लगातार भ्रस्ट राजनेताओ के शासन की गलत राजनीति से ग्रस्त जनता 2014 चुनाव के पश्चात एक नई स्वस्थ राजनीति का अनुभव करने लगे। माननीय नरेंद्र मोदीजी प्रधानमंत्री पद संभालने के पश्चात सर्व प्रथम उन्होंने अर्थव्यस्था पर विशेष ध्यान दिया।खाओ ओर खाने दो की राजनीति को भारी चोट तब लगी जब देश मे 1000 एवम 500 के नोट पर पाबंदी लगी। जनता ने इस पाबंदी का पुरजोर स्वागत किया।इस पाबंदी से भ्रस्टाचार पर कुछ रोक लगी।गरीबो के लिए उन्होंने विभिन्न योजनाओं को अमल में लाया।स्वच्छ भारत तहत लोगो को स्वछता के लिए प्रेरित किया।GST ने कारोबार ओर सरल किया।स्वास्थ को ध्यान में रखते हुए लाखो शौचालयों का निर्माण करवाया गया।सड़क, रेल एवम रक्षा विभिन्न विभागों तहत विभिन्न परियोजनाओं को कार्यन्तित किया गया।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी पक्के देश भक्त,नैतिकता के पुजारी,सदैव ईमानदार, आवश्यकतानुसार वादों को कार्यन्तित करने वाले,देशहित में चिंतन करने वाले सच्चे देश प्रेमी है।कहा जाय तो देश का यह स्वर्णकाल है। कर्मठ,परिश्रमी,लगनशील,हिन्दू हृदय सम्राट,सुयोग्य, दिव्य गुणी, स्वस्थ राजनीति के जन्मदाता ऐसे उपयुक्त प्रधानमंत्री भारत देश ने पाया है।आज भारत मे ही नही सारे विश्व मे हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र जी मोदी लोकप्रिय है।
हिन्दू राष्ट्र का निर्माण हो या न हो पर सभी को यकीन है माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र जी मोदी पूरी संजीदगी ओर गंभीरता से भारत माता को पुनः विश्व गुरु का दर्जा दिलवाने हेतु प्रयासरत रहेंगे।
चाणक्य ने कहा था जब सारा विपक्ष एक हो जाये तब समझो देश का राज ईमानदार है।
जो पानी से नहायेगा वो सिर्फ लिबास बदल सकता है।
लेकिन जो पसीने से नहायेगा वो इतिहास बदल सकता है।।
जय श्री कृष्ण
मेरा आपको नमन।
आप निरंतर अपने ज्ञान के दीप से सबको प्रकाशित करते रहे।