रफ़्तार

तीव्र हवाऐं चीरती कानों को
छीन लिया ज़िन्दगी का सुकून
वृक्ष हिलता पत्ता पत्ता डर रहा
तेज़ रफ़्तार से गिरता पड़ता सभंल रहा

न जाने क्यूँ दौड़ रहे हैं सब 
ठहराव नहीं किसी में अब 
ख़्वाबों के मुकम्मल की आरज़ू में 
रुकेगा ये काफ़िला कब!

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