पल भर में ये क्या हो गया, वो मैं गयी वो मन गया –
बेहद खूबसूरत पंक्ति इस गीत की, जब भी सुनो मन कहीं खो जाता है। मन के अंतर्मन में संजोए अनगिनत सपने जहाँ सिर्फ प्रेम ही प्रेम है। उम्र के ऐसे दौर पर,जिसमें मन के कोने में कोपलें फूटती हुई, गुदगुदा सा एहस़ास लिए उन सपनों को पाने की उत्कंठा दिल को बैचैन कर देती है। यह सिर्फ महज़ कल्पना है या वास्तविकता, इसे जानने के लिए हमें अपने मन को समझना बेहद ज़रूरी है।
मन क्या है? मन हमारे अंदर का आत्मिक भाग है जहाँ पर हमारी भावनायें एवं इच्छाएँ वास करती हैं । यह वायु रूपी वेग है जो पल भर में पूरे ब्रह्मांड की सैर कर आता है, ज़्यों-ज़्यों हम युवावस्था की ओर बढ़ते हैं, हमारे शरीरिक बदलाव के साथ- साथ मन भी बड़ी अठखेलियाँ करता है। मन हमारा संग्रह है परंतु संग्रह कैसा हो? संग्रह खूबसूरत लम्हों का, विवेक, ज्ञान और संयम का।आकर्षण, सुंदरता, प्रेम, आसक्ति तथा मोह से सुसज्जित यह मन यूँ तो किसी भी उम्र में वशहीन हो जाता है। एक सुंदर स्त्री या पुरुष को देखा, विवेक थम गया, कामवासना की लहर उठ गई, मन चंचल हो गया, उसको पाने की इच्छा समाने लगी।
मन का यह रोमांचक खेल जिसे हम भीतर ही भीतर चलाते रहते है और वास्तविकता से हट कर काल्पनिक रूप से सम्मोहित होने लगते हैं तभी तो हम देखते हैं कि अक्सर पर्दे पर नजर आने वाले हीरो-हीरोइन कैसे दिल में उतर आते हैं। रंगीन पर्दा भी तो वास्तव में काल्पनिक चित्रण ही तो है। लेखिका विद्यालय के क्षणों को याद करते हुए लिखती हैं कि उनके कई युवा मित्र अपनी पढ़ाई की किताबों में अभिनेता व अभिनेत्रियों की फोटो को छिपाकर रखतीं थीं, वह महज़ कल्पना ही तो होती थी उनको पाने की, परंतु कल्पना को जब हम वास्तविक जीवन में ढूँढने का प्रयास करते हैं, यहीं से जीवन में प्रादुर्भाव होता है समस्याओं का और जगह लेती है खुशियों की जगह निराशा।
शबाना आज़मी,देश की बेहतरीन अदाकारा, जिन पर फिल्माया गया यह खूबसूरत गीत,एक ऐसा किरदार जो किसी के प्रेम में खोया हुआ और मन उसे पाने को व्याकुल है, न लोगों की परवाह, न समाज की चिंता, सच है ना कि जब कोई प्रेम में होता है तो चारों ओर रोशनी ही रोशनी दिखाई पड़ती है, सजने – संवारने को दिल करता है, स्वयं को आईने में निहारती आंखें, गालों पर बिखरी लटें, कानों की झूमती बालियाँ और पैरों की पायल जैसे सब कुछ मानों खनकने सी लगती है। मन के इस रूप को देखो तो शायद इससे ज्यादा खूबसूरत जीवन में कुछ भी नहीं! मैं कौन हूँ? इसका भी एहसास लोप सा होने लगता है। प्रेम के पथ से जब जीवन गुजरता है तो अजीब सा सुकून आत्मा में आता है और यहीं से होता है आत्मा और परमात्मा का मिलन। मधुमक्खी के लिए फूल ही जीवन का सर्वोच्च अमृत स्त्रोत है तो फूल के लिए मधुमक्खी प्रेम का संदेश लाती है। हमारे जीवन की सबसे बड़ी मांग क्या है? एक ही उत्तर मिलेगा-प्रेम।
गाने की दूसरी पंक्ति जब तक न लिखी जाये तब तक इसके पूर्णतः पर नहीं पहुँच पायेंगे। चुनरी कहे सुनरी सजन, सावन आया अबके सजन – युवावस्था का प्रेम संगी-साथी ढूँढता है। आसमान में पंख पसारे उड़ते पक्षी की तरह उड़ने को तैयार आकुल मन, गुनगुनाते स्वर, लहलहाते वृक्ष, झूमती सावन की फुहारें और अंगड़ाई लेता अंग-अंग मानो किसी की आस में खो गया है, बिखरे और खोये मन को एक जगह लाकर समेटना ही तो प्रेम का स्वरूप है।
प्रेम की प्रेरणा है सकारात्मक ऊर्जा एवं सुखद एहसास जो आपके मन को आंदोलित कर जाता है। यहीं से मुखड़े की अंतिम पंक्ति को गुनगुनाने की इच्छा जागृत होती है। तुम बिन अब तो रहा नहीं जाये ! प्रेम, आनंद, मेल और विश्वास, जो कभी न मिटने वाला परमात्मा का वह रूप है जिसमें उमंग है, तरंग है, मन की सच्ची सुंदरता है। मन जब भी किसी नये पल या उत्तेजना की माँग करता है तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम सावधान रहें और खोजें कि मन की मांग कितनी उचित है, वह हमारे उम्र अथवा समय के कितने अनुकूल है और उसे इस ईंधन की कितनी आवश्यकता है?
वर्तमान में यह विकृति की ओर अग्रसर होने लगा है क्योंकि इसकी सबसे बड़ी वजह है प्रेम और आकर्षण के अन्तर को न समझ पाना। हमें मन के साथ-साथ प्रेम और आकर्षण को भी समझना जरूरी होगा। प्रेम वास्तविक है और आकर्षण महज़ एक कल्पना। प्रेम स्थायी है और आकर्षण अस्थायी, मसलन किसी से पार्टी में मुलाकात हुई, खूबसूरती देखते ही आकर्षित हो गये पर अब उसे पाने की चाहत में बिना सोचे समझे दिशाहीन होने लगे, यहाँ सही मूल्यांकन करते हुए सजगता के साथ अपनी वृत्तियों को संभालना होगा। हमारे फ़िल्म इंडस्ट्री के एक बेहतरीन कलाकार स्वर्गीय श्री राजेश खन्ना साहब, जिनके आकर्षण में लड़कियाँ इस हद तक पागल हो जाती थी कि जान देने तक को तत्पर हो जाती थी, क्या व्यक्तित्व था उनका, आप सब जानते होंगे कि इस वजह से उनको काला कपड़ा पहनना निषेध कर दिया गया था, पर दरअसल महज़ एक आकर्षण ही तो था, उनकी खूबसूरती का, उनकी अदाकारी का। चकाचौंध एवं ग्लैमर के आसमान में उड़ने वाले अधिकांश सितारे भी रिश्तों की पवित्रता और जीवन की चेतना को ढूँढ ही नहीं पाते।
इन दिनों भारत में निरंतर युवाओं का देह पर केन्द्रित होता आकर्षण और पश्चिमी सभ्यता के अनुसरण में बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड बनाना जैसे स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है और भावनाओं में बहने से कई ज़िन्दगियां बरबादी की ओर जाने लगी है, इससे कदम लड़खड़ा जाते हैं। ऐसे में संयम और विवेक से काम लेना चाहिए। शक्ति स्वयं के भीतर होती है, बुरी वृत्तियों को ताक़त लगाकर दबाना कमजोरी है। आप आत्मावान और बलशाली बने, जिससे बुरी वृत्तियां उठ ही न पाये। कामवासना में घिरा मन बड़ी जल्दी ऊब जाता है फिर वो अति से क्षति पर चला जाता है। भारत में हम मर्यादित जीवन जीते आए हैं पर विदेशों में प्रेम का यहीं रूप स्वछंद आचरण में परिवर्तित होकर परमार्थ रूप से मात्र भौतिकता में बदल जाता जाता है। इस आकर्षण में युवावर्ग जब यथार्थ के धरातल पर जीवन को रखता है तो पाता है कि सब कुछ अस्त व्यस्त हो गया।कई बार हम देखते हैं कि फलाने की लड़की फलाने के लड़के के साथ प्रेम जाल में फँस कर भाग गई, ऐसी स्थितियां कई बार परिस्थितियां आत्महत्या तक को मज़बूर कर देती है। ऐसे में युवाओं को अपने माता पिता को मित्र समझ अपने मन की साझेदारी जरूरी है और पैरेंट्स को भी शुरू से ही अपने बच्चों को सही शिक्षा देनी होगी जिससे मन रूपी घोड़े को विवेक और संयम रूपी लगाम से कसा जा सके।
सच्चे प्रेम को कैसे जाने? इसका मापदंड क्या है? आप जिसे प्रेम करने लगे हो वह आपके भविष्य के लिए कितना सुरक्षित है? मन तो जायेगा, आकर्षण भी होगा, जहाँ आकर्षण होगा वहाँ प्रेम का अनुभव भी होगा, पर उसे देखो, सोचो और समझो कि तुम्हारे जीवन के लिये कितना उपयुक्त है, तुम्हारे सामाजिक मूल्यों पर कितना खरा उतरता है, तुम्हारे परवरिश की पृष्ठभूमि के साथ उसका सामंजस्य कितना है? तुम समझदार हो, विवेकमंद हो, समझ जाओगे, अब सही दिशा कैसे हो इसे सिर्फ और सिर्फ तुम्हें तय करना है।
लेखिका कहती हैं कि सावधान, जीवन में भावनाओं के इस मोड़ पर की गई एक भूल सम्पूर्ण जीवन को बिखेर देती है और फिर रह जाता है पश्चाताप!
“प्रेम तो शाश्वत है,
प्रेम तो चिर – अनन्त है,
प्रेम ऐसा जो जीवन करे सबल,
प्रेम ऐसा जो जीवन में लाये एक पहल।
पीर लिखो तो मीरा जैसी,
मिलन हो कुछ राधा सा,
दोनों ही है कुछ पूरे से,
दोनों में ही वो कुछ आधा सा।”
प्रेम की परिभाषा नहीं होती, प्रेम ईश्वर के सिवा किसी से नहीं हो सकता लेकिन हम ईश्वर का रूप अगर सभी में देख सकते हैं तो हम सब से प्रेम कर सकते है बस यही प्रेम है 😊
आपको शत्-शत् नमन।
प्रेम में ही जीवन का सारांश है।भटक न जाय ,उसका विशेष तौर पर ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
पल भर में ये क्या हो गया
वो में गयी वो मन गया
एक नया विषय एक नई सोच अपने नाम के अनुरूप लेखिका ने इसी खूबसूरती पंक्ति के साथ उसी खूबसूरत अंदाज़ में रखा। किसी ने सच कहा है:
कितने अजीब होते है-ऐसे भी है कुछ बंधन।
कोई डोर नहीं – फिर भी बंध जाते है मन ।।
बाल मन माता पिता के प्रेम एवम संस्कारो वही विधार्थी जीवन शिक्षकों से ज्ञान ,दोस्तो की संगत एवम किशोर अवस्था की हसी मजाक में बिता।
युवा मन आते आते उसमे आंतरिक विचारो एवम शारारिक सरंचनाओं में बदलाव स्वाभाविक है। ईश्वर द्वारा नर व नारी की अलग अलग शारारिक रचनाये ही एक दूसरे को आकर्षित करने के लिए पयार्य है।
नर व नारी का एक दूसरे के प्रति आकर्षण मानसिक सुंदरता के बजाय शारारिक सुंदरता पर ज्यादा रहता है। फिल्मी कलाकारों की तरफ उनका झुकाव का कारण केवल उनके शारारिक सुंदरता को ही जाता है। जो वो चलचित्रों में देखते है उसे या उसके अनुरूप जीवन साथी की कल्पना अपने मन मे बसा लेते है।
युवा अवस्था मे फिल्मे देखकर ये युवा मन भटक जाते है। राह चलते पराई देह का अवलोकन करना ।अनैतिक कार्य मे सलग्न होना प्रायः ऐसी मानसिक दुर्बलता के शिकार ये युवा मन हो जाते है।
युवा अवस्था मे मन मे बसे आपके काल्पनिक जीवनसाथी जो शारारिक सुंदरता से ओत प्रोत हो के बजाय अगर एक ऐसे जीवनसाथी का चयन हो जाय जो मानसिक सुंदरता से लबालब हो तो लब पर शीर्षक गीत की पंक्तिया अपने आप गुनगुना उठेंगी। जीवनसाथी के साथ यह आत्मिक प्रेम किसी भी सुंदर चहरे को नजर अंदाज कर जीवनसाथी हर चहरे पर अपने साथी की ही झलक देखेगा।ऐसे जीवन साथी के साथ राधा कृष्ण जैसा प्रेंम अपेक्षित है।जीवन तो सब जीते है लेकिन ऐसे प्रेम के साथ हर ऋतु चाहे ठंड हो,बरसात हो या गर्मी सभी ऋतुयें उनके प्रेम को खुशगुजार बनाने में सहयोग देते है।ऐसे जीवन साथी हरदम मर्यादा में रहते है।
किसी को प्रेम देना सबसे बड़ा उपहार है।
ओर किसी का प्रेम पाना सबसे बड़ा सम्मान है।
भारत देश रिश्तों की गरिमा को ज्यादा महत्व देता है।जहाँ मर्यादा एवम प्रेम का संदेश देने प्रभु राम एवम प्रभु कृष्ण ने अवतार लिया।वही पाश्चात्य देशों में रिश्तों की गरिमा प्रायः न के समान है यही कारण है वहा अनैतिक रिश्तों का कोई मापदंड नही है। विद्यार्थी जीवन से प्रायः बच्चे अपने माता पिता से अलगाव कर स्वतंत्र जीवन जीने लगते है। यही स्वतंत्रता उनके बरबादी का कारण बनती है।
जैसा कि लेखिका ने अपने विषय द्वारा लोगों में एक नई चेतना का उदघोष किया हम उसका अभिनंदन करते है यह कहते हुवे की जीवनसाथी के साथ रेल पटरी के समान सफर मत करो सफर करना है तो सागर की तरह करो जहा प्रेमरूपी लहरे हरदम एक दूसरे पर वार करती है एवम पुनःच समानान्तर हो जाती है। विश्वासरूपी जल समरूप नजर आता है।
‘सच्चे प्रेम’ की कोई ‘परिभाषा’ नही होती।
‘प्रेम’ बस वही है जहाँ कोई ‘आशा’ नही होती।।
प्रेम से बोलो जय श्री कृष्ण
अपना बहुमूल्य समय देकर आप लिखते आ रहे हैं, इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
प्रेम ईश्वर की प्रतिमा है और निष्प्राण प्रतिमा नहीं, बल्कि दैवीय प्रकृति का जीवंत सार, जिससे कल्याण के गुण छलकते रहते हैं। -लूथर
I know a recreation we can play that is like Daddy is talking about.?
Mommy said making both boys wish to know the game a lot.
?It?s referred to as ?Whats the neatest thing about God.
And every of us has to provide you with one actually great thing
we like about God. Who desires to go first??
Lee and Larry jumped and shouted ?ME ME!? waving their
palms in the air like they do at school. Finally, Mommy said, ?Nicely Lee, since youre two minutes older than Larry, you may go first.
sure..my next poem posted