पहली मोहब्बत पहला ख़त

पहली कहो चाहे आख़िरी
एक ही पर ये दिल आया 
मांग में सिंदूर भर जिसने
मुझे जीवन साथी बनाया

मोहब्बत को क्या नाम दूँ
उसको क्या मेरा पैगाम दूँ 
सोचती रही कलम उठाया 
मैंने ख़त लिख भिजवाया

आज राज खोल ही देती हूँ 
प्रेम की कहानी बोल देती हूँ 
गुलाब की कुछ सूखी पत्तियां 
अधूरे लब्जों को जोड़ देती हूँ

तुम दिया मैं जलती हुई बाती
तुम्हारे बुढ़ापे की मैं हूँ लाठी 
रखना मुझे प्यार से सहेज कर 
मैं हूँ अब जन्म जन्म की साथी

मेरे प्रियतम तुम्हारा प्रेम बंधन 
जीवन मोहपाश अंतिम क्षण 
रात के ख़्वाब दिन के उजाले 
तुम ही हो ख़ुशी तुम ही क्रंदन 

मेरे शब्दों के मोती अलंकार
मेरी कविता के तुम सृजन हार 
मेरे प्रेम के रिश्तों का आधार 
मेरे जीवन के तुम ही हो सार

ख़त के लिफाफे को देखकर 
मत समझना इसे कमज़ोर 
ऑनलाइन के इस ज़माने में 
काग़ज कलम दवात भूले लोग

पहले प्रेम के ख़त को रखना
अलमारी में अपने सम्भाल
जब जब होगी लड़ाई हममें
करेंगे इसका हम इस्तेमाल

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