माँ और शिक्षिका
माँ और शिक्षिका दोनों एक समान है…. माँ जीवन देती है, शिक्षिका जीना सिखाती है।माँ आत्म-विश्वास जगाती है, शिक्षिका अनुशासन सिखाती है। माँ रोज सुबह जल्दी उठकर टिफ़िन बनाती है,स्कूल भेजती है, शिक्षिका रोज सुबह जल्दी उठ कर स्कूल पहुँचती है आपको पढ़ाती है, एक्टिविटीज करवाती है।माँ जब आप बीमार होतेContinue Reading
अनपढ़ कवि
एक दिन अनपढ़ कवि मुझसे मिले कहा कविता कहता हूँ मैं दिल से। लिखना पढ़ना मेरे भाग्य में न था माता पिता का बचपन में सौभाग्य न था। अंदर से एक ज्वाला जगी थी कवि बनने की आशा लगी थी। जहाँ चाह होती है वही तो राह होती है कुछContinue Reading
नवोदित सौराष्ट्र
अनेकता में एकता का प्रादुर्भाव हुआ हर नागरिक के दिल में जन्म सद्भाव हुआ। न्यायधीशों को करते हैं हम सब नमन गद्-गद् उठा है हर भारतवासी का मन। हिन्दुत्व की इधर शान बढ़ी मुस्लिम का उधर सम्मान बढ़ा। सुप्रीम कोर्ट का सबसे बड़ा फैसला होगा अब अयोध्या में राम ललाContinue Reading
अस्तित्व का दर्पण
आज नहीं थमेगा मेरा मन दिखेगा अस्तित्व का दर्पण कलम लिखेगी अल्फाज़ मचलेंगे होगा जज़्बातो का अर्पण। कौन हूँ कहाँ से आई हूँ क्या जीवन का उद्देश्य क्या मुझे करना है अंतर्मन को कुछ कहना है। मैं मधु निज़ अस्तित्व को ढूँढती माँ धरती को कर प्रणाम रोज सुबह होताContinue Reading
साँप और फ़ितरत
फ़ितरत थी साँप की चंदन से लिपटते रहे तन की गर्मी को ठंडक देते रहे। महफ़िल में ओढ़ मुखौटा नफ़रत करते रहे दोस्ती का नाम देकर दुश्मनी करते रहे। रिश्तों की दुकान पर ख़ुद ही बिकते रहे जब-जब करीब गए फन से डसते गए। इंसानों की बस्ती में जानवरों सेContinue Reading
एक मुलाकात गाँधीजी से
महात्मा गांधी महान थे, उनके नाम, चित्र और चरित्र के बारे में जितना भी कहेंगे, कम होगा। ब्रिटिशों से हमें 150 सालों में ही आज़ादी मिल जाती अगर गरम पंथियों को समर्थन किया होता, परन्तु ये तो गाँधी जी की दृढ़ शक्ति थी कि हम अहिंसा के पथ पर हीContinue Reading
साधना व्रत और उपवास
साधना मन की मुक्ति है, व्रत तन की शक्ति है और उपवास तन और मन दोनों की शुद्धि है।नवरात्रि पर इन तीनों का बड़ा महत्व है क्योंकि नवरात्रि आत्मनिरीक्षण और शुद्धि की अवधि है। साधना – जिज्ञासा मन के अंदर की उत्पत्ति है, इसे बाहरी दुनिया में ढूँढना तो मूर्खताContinue Reading
समीक्षा का महत्व
समीक्षा एक समान्य अवधारणा है। भविष्य के निर्णय, योजना और विश्वसनीयता के लिए समीक्षा की आवश्यकता होती है। समीक्षा भरे हुए जल के ऊपरी सतह का निर्धारण करता है। यही समीक्षा जब व्यापक और विश्लेषणात्मक होती है तो आलोचना में परिवर्तित हो जाती है। समीक्षा का विच्छेद सम्यक इच्छा। पाठकोंContinue Reading
संस्कारों का बोझ
किसने कहा युवाओं में संस्कार नहीं होते शायद हमसे ही कई उपकार नहीं होते कहते हैं युवा पीढ़ी संस्कार खोने लगी है सच है हमसे परवरिश में भूल होने लगी है। आक्षेप तो हर पीढ़ी ने पीढ़ी को दिया है पर वृक्ष के इस बीज़ को किसने सृजन कियाContinue Reading
विद्यासागर-महान विभूति की आवश्यकता
ईश्वर चंद विद्यासागर का जन्म पश्चिम बंगाल में 26 सितंबर 1820 को हुआ था। बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था। दार्शनिक, लेखक, सुधारक शिक्षाविद्, अनुवादक और संस्कृत भाषा के अगाध पाण्डित्य के कारण विद्यार्थी जीवन में ही संस्कृत कॉलेज द्वारा उन्हें ‘विद्यासागर’ की उपाधि प्रदान की गई थी। हमारेContinue Reading