पड़ोसी ने मांगी दालचीनी मैंने कहा रोज रोज मांगते हो मुझसे आज नहीं दीनी। वो बोला क्यों होते हो नाराज हर सुख दुख का मैं ही साथी हूँ तेरा हमराज़। परिवार तेरा रहता दूर मैं ही हूँ तेरे जीवन का नूर कहने को मेरे भाई मत कर मुझको मज़बूर। आधी रात को हुई तकलीफ जब बेटे ने खाई नींद की गोली तू भागा आया मेरे पास मैं ही था जीवन की आस। हम दोनों ने मिलकर उसकी जान बचाई एक दूजे को दी बधाई आंखे थी हमारी नम बड़ा भारी था वो गम। देखते देखते पड़ोसी से हम रिश्तेदार बन गए इक दूजे संग उठते बैठते आपस के राज़दार बन गए। तूने भी निभाया ग़ज़ब का साथ जब दिया मैंने बेटी का हाथों में हाथ घर आया बैंड बाजा बारात निभाया पड़ोसी धर्म कमाल का किया मेहमानों का स्वागत पूरी रात। जाते जाते लड़के वाले बोल गए प्रेम की सारी परतें खोल गए खुशनसीब हो समधी साहब आपके पड़ोसी भाई से बढ़कर किया हमारा सत्कार रहे हृदय से तत्पर। हमको दिया बड़ा सम्मान बढ़ाई हमारी भरपूर शान ऐसा पड़ोसी तो किस्मत वालों को ही मिलता है वरना तो देखा है अक्सर हमने हर कोई उससे झिलता है। छोटी छोटी बातों पर मत लाना जीवन में मनभेद गहरे पैठ रमाना अंतर्मन हो जाए कोई भी मतभेद। अब दालचीनी छोड़ तेरे हाथ की कड़क चाय पीकर ही जाऊँगा थोड़ी गप्पे और बुराई करके अपना पड़ोसी धर्म निभाउंगा।
2020-08-01