नारी का दर्पण 

मन मोहिनी श्रृंगार तन सजाये 
आईने में अपना ख़्वाब बसाये 
खूबसूरती देख ख़ुद हुई बावरी 
मदमस्त दर्पण अति शरमाये।

होठों पर लाली नयन कजरारे
हाथों में कंगन नीले हरे सुनहरे
नारी का अस्तित्व खिला रूप
लज्जा प्रेम स्नेह सौम्य नखरारे। 

प्रियतम की आस  प्रेम अलंकार बहे
आकुल सांसे मौन मन दर्पण में खोये 
तृप्ति भाव तुमसे अभिलाषित हो रही 
इठलाती बलखाती पग बिछुड़ी कहे। 

चेहरे पर मुस्कान पल पल निखरे
सम्पूर्ण व्यक्तित्व परिपक्व हो उतरे 
आँचल में प्यास जनम भर के लिए 
दर्पण को देख कर प्रतिबिंब भी उभरे।

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