नारी जीवन

हर उम्र के दराज़ पर एक नया रूप धरती
कभी बेटी कभी बहन बन जीवन में रहती

अपने स्नेह प्रेम से घर आँगन को महकाती
कभी पत्नी कभी माँ बन रिश्तों को सजाती

नारी जीवन संयम धैर्य सहनशीलता से चला 
अपनों को एक सूत्र में पिरो कर रखती कला

अंतर्मन से जुझ कर संघर्षों से रखती सहभाग 
अपनों के लिए वह करती हर कदम पर त्याग

नारी जीवन का हर काल में बदलता रहा स्वरुप
नारी के अस्तित्व से दिखता भव्य राष्ट्र का रूप

बंद करो दुहाई समानता के अब अधिकारों की
नारी सदा से आगे रही लड़ाई सोच विचारों की

घूंघट दहेज प्रताड़ना भ्रुण हत्या से तुम्हें लड़ना होगा 
अपनी अदम्य साहस शक्ति को बस पहचानना होगा

नारी परिवार समाज राष्ट्र के अस्तित्व की पहचान है
नारी तू नारायणी नमन भगवन् की भी हृदयी प्राण है।

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