नामकरण संस्कार

16 संस्कारों की श्रृखंला में पाँचवा हिन्दू संस्कार है नामकरण संस्कार, जिसमें ज्योतिष शास्त्र के अनुसार संतान का नाम रखा जाता है।नाम का प्रभाव स्थूल सूक्ष्म व्यक्तित्व पर गहराई से पड़ता है। नाम को सोच समझकर सूझबूझ से रखा जाना चाहिए, क्योंकि नाम की महिमा अत्यंत महत्वपूर्ण है।मात्र राम नाम के संस्मरण से इंसान भवसागर से तर जाता है तो यह सच है कि नाम की महिमा अवश्य ही महान है। जीवनपर्यंत हमारा नाम हमारे साथ होता है, अच्छे कार्यो से यही नाम रोशन होता है तो बुरे कार्यो से यही गर्त में डूबता है, इसलिए इस संस्कार का विशेष महत्व है।
अभिभावकों द्वारा श्रेष्ठतम दिशा में प्रवाह पैदा करने की दृष्टि से इस संस्कार को किया जाता है। यज्ञ, हवन द्वारा नई जन्म ली हुई जीवात्मा यानि कि आपकी संतान का मौलिक कल्याण हेतु यह संस्कार लाभप्रद है। इस में माता और संतान दोनों को नए स्वच्छ सुन्दर कपड़े पहनाए जाते है। सूर्य के दर्शन के साथ सूर्य की तेजस्विता और दिव्यता के वातावरण से उत्साहित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार संतान के नक्षत्र से अक्षर लिया जाता है और उसी अक्षर से उसका नामकरण किया जाता है , जिससे जीवन भर राशि का प्रभाव और फलादेश सही मिलता है।
हमारी पहचान हमारे नाम से ही रहती है,अच्छे नाम से सभी को प्यार होता है और ताउम्र अपने नाम से खुशी मिलती है, परन्तु कई बार बच्चे अपने नाम से खुश नहीं होते हैं और अक्सर माँ बाप को कहते हुए हम सुनते हैं कि क्या नाम रख दिया आपने, इसलिए इस संस्कार को बहुत ध्यान से पूरा करे, जिससे संतान अपने नाम से स्वयँ को जीवन भर गौरवान्वित महसूस करती रहे।
नामकरण संस्कार में घर के दादा, दादी, बुआ द्वारा संतान के दाहिने कान में बोलकर उस का नाम रखा जाता है , परंतु धीरे-धीरे आजकल प्रथा परिवर्तित होने लगी है।आजकल अधिकांश माता-पिता स्वयँ ही संतान का फैशनेबल नाम रखने लगे हैं।
गुलाब की पंखुरियां और शहद चटा कर इस संस्कार का स्वस्ति वाचन किया जाता है।

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