Corona-8th Day Lockdown

माँ का रुदन, धरती माँ का क्रंदन, परमात्मा का स्पन्दन उन संतानों के लिए जिसे उसने जन्म दिया क्योंकि जब सृष्टि किसी की उत्पत्ति करती है तो वह अपना सर्वस्व बलिदान कर उसे स्वरूप प्रदान करती है। मनुष्य को प्रेम करने से ज्यादा सरल मानवता को प्रेम करना है क्योंकि यहाँ कोई जोखिम नहीं है परन्तु एक इंसान ही सारी मानवता से ज्यादा ख़तरनाक है, तो समूह का क्या कहें!
कोरोना की वज़ह से आज जब देश पर महासंकट का गहन अंधकार हो गया है तो अभिव्यक्ति का अधिकार जरूरी है या यूँ कहें जबरन मानवाधिकार जरूरी है।इस महामारी में कितने परिवारों के आँसू आँखों की कोर से टपक रहे हैं, कलेजा दर्द से छलनी को है, हर घर का सदस्य डरा हुआ है, सड़के सारी सूनी और वीरान हो गई है और वही दूसरी ओर मानव जाति के दुश्मन, मानवता से अभिशापित होकर अनंत ज्ञान, अनंत संवेदना, अनंत शक्ति का दुरुपयोग करने को आतुर हो कर निकल पड़े हैं क्रूरता और मानवता की हत्या करने को,जो निश्चय ही वीभत्स, मन को व्यथित करने वाली, दुखद, दर्दनाक, अमानवीय, अक्षम्य और घिनौनी हरकत है।वो कहते हैं कि एक दिन सबको जाना है, मौत से हमें नहीं डरना है, वो तो हमारे आगे-आगे चल रही है, इससे भाग कर कहाँ जा सकते हैं, इसलिए हम अछूत नहीं रहना चाहते हैं,हम जैसे जी रहे थे, वैसे ही जिएंगे, सही कह रहे हो, अपने रूह से तुम्हें बहुत लगाव है, अपने परमात्मा पर तुम्हें बहुत भरोसा है, बहुत प्यार करते हो पर क्या तुम जानते हो कि कोरोना संक्रमण की बीमारी है? ये तुम्हारें मात्र तन को नही, अपितु मानवता की नृशंस हत्या के नाते तुम्हारे मन को भी संक्रमित कर देगी, तो अपने ईश्वर या अल्लाह के पास जाकर उन्हें क्या दोगे, संक्रमण!!! ऐसे में तो तुम्हारे परमात्मा या मौला… वो भी संक्रमित हो जाएंगे तो तुम उनके साथ ऐसा क्यूँ कर रहे हो!नफ़रत की खेती से क्या पाओगे?आत्मघाती कायरता का परिचय क्यूँ देना चाहते हो?

आज तो कोरोना का रोना है,परन्तु हमने देखा है कि जब-जब भी मानवता पर अत्याचार हुआ है क्यों हर बार कोई एक संगठन विनाश का कारण बनता है और उसके कृत्य पर लाखों आँखें नम हो जाती है, उसको जन्म देने वाली माँ उसकी जन्मोत्पत्ति पर रुदन करती है,अपने कोख को कोसती है, स्वयँ को असहाय समझती है, दुख तब असहनीय हो जाता है जब पूरा समाज और देश उसके ही रिश्तेदारों को जीवनपर्यंत कटघरे मे खड़ा कर तिरस्कृत कर देता है,उसका जीवन पीढ़ी दर पीढ़ी इस पाप से मुक्त नहीं हो पाता है और तो और उसके पूर्वज भी खून के आँसू रोते हैं , परमपिता भी उसे स्वीकारता नहीं है, ऐसी संतान से सिर्फ परमपिता परमात्मा ही नहीं उसका भार वहन करने वाली माँ धरती भी पीड़ित होकर रुदन व क्रंदन करती है,तुम्हारा ऐसा जीवन किस काम का!! जिसके साथ भी और जिसके जाने के बाद भी… अभिशाप…एक बात तुम्हें समझ लेना चाहिए कि इसका कोई क्षमादान नहीं है।

काश इस बार बरस जाए मानवता की बारिश, लोगों की रूह पर धूल बहुत हो गई है।

निर्दयता और शर्मसार कृत्यों की बजाय कुछ सर्वोत्कृष्ट सत्कार्य करके तो देखो जीवन के उस परम आंनद को महसूस कर पाओगे, जिस की तुमने कभी कल्पना भी नहीं होगी, यक़ीन मानो वहाँ सिर्फ असीम प्रेम है, अनंत खुशी है,आत्मसंतुष्टि है।

जब माँ की कोख सहम जाए
किलकारियाँ खामोश हो जाए
आँखों को खौफ़ नज़र आए
इंसानियत शर्म से झुक जाए…..

तो समझ लो कुछ गलत है। 

विकास या विनाश… हमें क्या चाहिए ये हमें तय करना है,
हर आँख नम न हो हमारे हालात और बदतर न हो,इसके लिए अदम्य साहस, वीरता, सतर्कता, सेवा, सहृदयता, संकल्प और संघर्ष का समय है, जिससे हम अपने ही पराक्रम का नमन कर सके।

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