कुछ तो कहो ये दीवारें भी अब कहने लगी है अकेली तन्हा पथराई सिमटी सी रहने लगी है कितने बरस बीते हैं उसके आने की आस में ज़र्र-ज़र्र टूटकर ज़मी पर रोज़ बिखरने लगी है। 2022-05-28