परिंदों को पंख मिले गली मोहल्लों को मिली पहचान सचिन ने जब बल्ला उठाया राष्ट्र का बढ़ाया सम्मान मिट्टी से सने हाथ-पैरों ने लिखा इक नया इतिहास कहानी किस्से सपने बचपन के जीवित एहसास खेल-कूद पढ़ाई-लिखाई निश्चल बाल सुलभ मन भूल-भुलैया बंद कमरा न जाने क्यूँ खोता बचपन सूरज से उठता दिन चाँद से सोती थी बच्चों की रात वो दौर कुछ अलग था जब निकलते टोली के साथ कोड़ा दीवान शाही पीछे देखे मार खाई देशज खेल गिल्ली डंडा कंचे लुडो फुंगड़ी कबड्डी ख़ुशी के मेल वो मस्ती हँसी ठहाके लड़ाइयाँ पड़ोसी के कांच टूटते स्मृति में अंकित यादों से सजी धूमिल पन्ने बिखरते रास नहीं आए यह कैसा बचपन निकल गए सब दूर तमाम ख़्वाहिशें कैद हुई ख़त्म हो रहे चेहरों के नूर बस्तों के बोझ तले छीन लिया हमने बच्चों का बचपन आकांक्षाओं लक्ष्य पर केंद्रित कर कैरियर को समर्पण मोबाइल फोन से ख़त्म हो रहा उनके जीवन का आनंद किलकारी कम हो रही फूल मुरझा रहे घरों में होकर बंद चंचल नादानियाँ बाल मस्ती गुमसुम सी होती जा रही पतवार सम्भालो ये बचपन की कश्ती डूबती जा रही सर उठाकर जीते थे जो बच्चे आज सर झुकाए बैठे हैं टीवी फोन इन्टरनेट में घुस कर ख़ुद को लुटाये बैठे है बचपन तो बचपन है एक दिन वह यादों में बस जाएगा याद रहे जो पल जाएगा वो फिर लौट कर नहीं आएगा बच्चों की खुशियां सृष्टि का उल्लास ईश्वर का आभास सींचों नवांकुरों को बचाओ बचपन परवरिश करो ख़ास।
2021-03-13