कलम.. एक ख़्वाब

ख़ुशी की झलक कभी अश्कों की छलक
प्रेम की ललक कभी अपनेपन की चहक

कलम से निकले हर नायाब भावों के रंग
ज्ञान के दीप प्रज्वलित नयी चेतना के संग

एक ख़्वाब तलवार से पैनी क़लम की धार 
लेखनी मृत्यु के बाद भी जीवंत करें संसार 

कलम में सदा रहे  माँ वीणापाणि का वास 
असंख्य चेतना से बढ़ता रहे आत्मविश्वास

सहज़ कलम नम्रता सरलता का करे मनन
अद्भुत साहित्य का जीवन पर्यंत हो श्रवण

जब भी लिखूं बढ़े शिक्षा संस्कृति संस्कार
गौरवान्वित होवे समाज राष्ट्र और परिवार

इतिहास के पन्नों पर अंकित हो मेरा सृजन 
नीली स्याही भरी दृढ़ कलम को कर नमन 

सदियों से  कलम ने दी वज़ूद की पहचान
मधु की कलम से खुश हो पूरा हिन्दुस्तान

परमात्म कृपा हृदय से सहसा निकल उठे 
वाह ये कलम बोलती है उद्गार सहर्ष फूटे। 

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