कल की अठखेलियाँ

कल का दिन मेरा बड़ा प्यारा था
अठखेलियों का अद्भुत नज़ारा था

सड़क पर पैदल मैं चल रही थी 
आँखें मेरी ताक झाँक कर रही थी
 
तभी नज़र आए मुझे वो तीन बंदर 
गांधीजी की नव प्रतिमा के ऊपर

अठखेलियाँ कर वो सब नाच रहे थे
मन की बात बयां जुबां से कर रहे थे

बुरा मत देखो तुम कभी बुरा मत सुनो
न ही बुरा तुम कभी किसी से बोलो

सत्य अहिंसा का आपने पाठ पढ़ाया
ईश्वर अल्लाह नाम सबको जपवाया

हम तो दिल के सीधे और सच्चे है
सब कहते है देखो ये बंदर अच्छे है

बापू तेरा भारत सचमुच ऊँचा महान 
पर क्या इसको समझ पाया इंसान!

देख रही थी मैं उनकी ग़ज़ब मस्ती 
उछल कूद नटखट आंखें मटकती

एक ने बापू का चश्मा हाथ लगाया 
मेरा दिल उसे देख फिर से घबराया 

ये फिर बापू से करेगा नया सवाल 
भ्रष्टाचार से देश का बड़ा बुरा हाल 

बापू ने चुटकियां ली उन बंदरों संग 
पहनो स्वदेशी क्यों घूमते नंग धड़ंग
 
देखो भारत की इज़्ज़त का सवाल है 
विदेशी न कहे यहांँ बंदर भी बेहाल है
 
बापू की अठखेलियाँ देख मज़ा आया 
इंसा नहीं उनकी बातें बंदर तो सुन पाया।

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