जातकर्म संस्कार

जातकर्म संस्कार
जातकर्म संस्कार चौथा संस्कार, जो संतान के जन्म के तुरंत उपरांत का संस्कार है। दैवीय कृपा से बच्चा हमारे सामने प्रत्यक्ष होता है,यह सत्य है कि माँ बिना इस धरती पर आना सम्भव नहीं है, इसलिये माँ साक्षात् देवी है।जातकर्म संस्कार में हमारे घर के प्रभावशाली बुज़ुर्गो जैसे कि दादा-दादी नाना-नानी के द्वारा जन्म घूंटी दी जाती है जो घृत और शहद की बनी होती है और सोने की सलाई या चम्मच से बच्चे को चटाया जाता है, इससे उसमें विशिष्ट गुणों की वृद्धि होती है। परिवार के भीतर रचने बसने की क्षमता आती है। साथ ही माता के गर्भ में होने वाले सारे रस दोष से मुक्ति मिलती है। इस संस्कार से स्वस्थ, बुद्धिमान, बलवान, दीर्घायु एवं मेधावी संतान का सृजन होता है।
स्वर्ण , घृत और शहद की विशेषता – सोने से रक्त ऊर्ध्वगामी होता है, वात रोग दूर होता है, मूत्र स्वच्छ होता है, घृत को तालु में लगाने से संतान की बुद्धि, अग्नि, आंखों की रोशनी, स्वर की शक्ति और बल पुष्टि होती है और शहद से लार संचार होता है, इसलिए इसे अमृत तुल्य माना जाता है। इसके बाद माता संतान को दुग्ध पान करवाती है।
जन्म लेने वाली संतान किस धर्म, जाति, संस्कृति से आपके गर्भ में प्रवेश करती है, उसका जन्म होता है ये हममें से किसी को नहीं पता होता है, इसलिए इन्हीं संस्कारों द्वारा शुद्धि सम्भव होती है इसलिए बच्चे के जन्म के पश्चात् ही हमारे घरों में सुआ मानते हैं और फिर विधिवत पूजन करके शुद्धिकरण करते हैं। अपने परिवार और संतान के भावी भविष्य को सुखमय बनाने के प्रयास में हिंदू धर्म के इन 16 संस्कारों का विशेष महत्व है।

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