जल की माया

जल ही जीवन है।

जी हाँ! इसमें कहीं दो राय नहीं है। हमारा शरीर हो या पृथ्वी, दोनों में ही भरपूर जल है और इसी से यह पृथ्वी भी चल रही है और हम भी, लेकिन उसके लिए निरंतर शुद्ध जल की आवश्यकता है। दूषित जल न शरीर को मंजूर है और न ही पृथ्वी को। ऐसे में समुद्र के रूप में अत्यधिक जल होते हुए भी वह आपके योग्य नहीं है और इसीलिए वह सभी के लिए पर्याप्त भी नहीं है।

भारत केप्रधान मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी जल संकट के समाधान के लिए इज़राइल में समुद्र के पानी को साफ और शुद्ध बनाने की वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रक्रिया को करीब से देखा और समझा भी है। कई सुविधाएं और तकनीकी को मुहैया कराने के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से भारत अभी भी उतना समर्थवान राष्ट्र नहीं है, इसलिए जल संसाधन के तकनीकी विकास के साथ बचाने की प्रक्रिया पर विशेष ध्यान ज्यादा जरूरी होगा।

हिन्दू धर्म के आधार पर शिवालय पर जल डालने की आस्था पर कोई असर नहीं आए, इसके लिए पहले ही हिन्दू धर्म के अनुयायियों और हिन्दुत्व समाज बंधुओं को वाटर हार्वेस्टिंग पर ध्यान दे दिया जाना चाहिए, जैसा कि शनि मंदिर में तेल चढ़ाए जाने पर वह जमा होकर वापस फिल्टरिंग के पद्धति से वापस काम में ले लिया जाता है।ऐसा ही शिव जी पर चढ़ाये जल के साथ भी शुरू कर दिया जाना चाहिए, जिससे अर्चना – पूजा के अस्तित्व पर कोई आँच न आए।

आरो फिल्टराइजे़शन की वजह से पानी का घर-घर में बेहद नुकसान हो रहा है, जिसे जमीनी स्तर पर जमा करना हर कोई के लिए सम्भव नहीं हो पा रहा है, नतीज़ा जल संसाधन की कमी, इसे बचाने के लिए हमारे साथ इसे बनाने वालों को भी सोचना होगा।

शावर से नहाना, मंजन करते समय नल चालू छोड़ना यह लापरवाही का हिस्सा है। वाशिंग मशीन एवं डिश वाशर में अत्याधिक जल का काम मे आना , किसी विवाह, पार्टी, सामूहिक भोज या कॉन्फ्रंस में दी गई बिसलेरी की बोतल में पानी का नुकसान जैसी अनगिनत जल संसाधन को बचाने हेतु छोटे-छोटे कदम उठाने से और सबके सहयोग से राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।

घर में आए मेहमानों को पानी की मेहमान नवाज़ी आवश्यकतानुसार ही करे। हाउस कीपिंग, होटल, रेस्तरां वालों को भी इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए, माना कि इनके द्वारा कस्टमर से पैसे लेकर स्विमिंग पूल जैसी मनोरंजन की उच्च स्तरीय सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती है, पर जब देश भारी जल संकट से जूझ रहा है, लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है,तो इसका अत्याधिक प्रयोग को रोकना ही होगा। जर्मनी में भोजन आपने अपने पैसों से खरीदा, परंतु खाने का मन नहीं है और झूठा फेंक दिया तो उस देश में इसे गुनाह मानते हैं यानि कि it’s crime.

मतलब साफ है कि सबको इससे निपटने के लिए प्रयास करना ही होगा, सिर्फ़ आज के लिए ही नहीं अपितु आने वाले कल के लिए भी। आज समाज का हर वर्ग जल के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा है,कल इसी जल के लिए हम सभी की भावी पीढ़ी भी त्राहि-त्राहि करेगी, इसलिए जी-जान से इस गहन समस्या से निपटना होगा।

बूँद बूँद करके घड़ा भरता है।

कल बचाने के जल बचाओ अभियान में क्या आप साथ देंगे?

2 Comments

  1. बात सही कहा कि बूंद बूंद से घड़ा भरता है सोचो जब 125 करोड़ बूंद बर्बाद हो तो कितना फर्क पड़ता है।हम तो केवल 125 करोड़ है लेकिन बारिश की कितनी बूंदे है गिनना मुश्किल है उसकी भी चाहत देखो।
    कुछ तो चाहत होगी
    इन बारिशों की बूंदों 💦 की भी
    वरना
    कौन गिरता है इस जमीन 💧 पर
    आसमान तक पहुंचने के बाद🌹।
    जल बहुत अनमोल है।जल ही जीवन है।शिवालय पर एक लोटा जल चढ़ाने से जल कम नही होता पर इन बारिश की बूंदों को अगर संचय नही किया तो जल कम हो सकता है।
    आपके विचार बहुत सुंदर है ।जल ही जीवन है अगर ये धारणा हमारे मन मे बस जाये तो निश्चित ही हम जल के हर संकट का निवारण कर सकते है।
    पर्यावरण तथा प्रकृति से खिलवाड़ करने का हरजाना भारत को हर वर्ष बाढ़ से लाखो करोड़ो का नुकसान, भारी जन हानि,ओर जल की बर्बादी के स्वरूप सहन करना पड़ता है क्या सरकार ऐसे प्राकृतिक विनाश को रोकने के लिये उचित कदम नही उठा सकती।
    जय श्री कृष्ण

    1. Author

      जल बहुत अनमोल है।जल ही जीवन है।

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