बचपन से हमने पढ़ा और सुना है कि गाय हमारी माता है, पर क्या हम सचमुच में मानते हैं? कई समय से ईश्वरीय कृपा से गौ सेवा का सुअवसर मिला है तो मानो यूँ लगता है कि इससे पहले जीवन व्यर्थ ही व्यतीत हुआ है। किसी विशेष परिणाम के लिए निरंतरता की आवश्यकता होती है। गौ सेवा करना बेहद आसान है, सिर्फ पाँच रुपए का हरा चारा और अगर खुद का ही खेत है तो वो भी खर्च नहीं।आवश्यकता है तो मात्र दृढ़ संकल्प की।
जयपुर शहर के जिस गौशाला में मेरा जाना होता है वहाँ करीबन 2500 गायें हैं और वहाँ निरंतर जाने से पता चला कि गौशाला में जितने पैसे होते हैं वो गायों को पालने के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं, करीब – करीब भारत के सभी गौशालाओं की यहीं परिस्थिति ऐसी ही है, अतः उनको सरकारी अनुदान और दान दाताओं पर निर्भर रहना पड़ता है, अब इसे हम देश की त्रासदी ही कहेंगे कि बचपन से जो पाठ हमें पढ़ाया जाता रहा है कि गाय हमारी माता है, पर उन माताओं को खाने का अभाव है, बीमार है तो इलाज की सुविधा उपलब्ध नहीं है ऐसा इसलिये कि धन का अभाव है। अब तक पूर्व सरकारी अनुदान भी कुछ ख़ास नहीं रहा है क्योंकि पिछली सरकारों द्वारा विशेष ध्यान नहीं दिया गया है पर इस बार हाँ! गौ संरक्षकों का कहना है कि वर्तमान सरकार ने इस मुद्दे को सदन में भी उठाया है साथ ही सरकारी सब्सिडी भी बढ़ाई है, जिससे गायों को पालना व रख-रखाव आसान हुआ है।
विशेष बात कि गाय को जब गर्भ धारण होता है तो उनकी भी एक महिला की तरह देखभाल की जाती है। ऐसे में भारत की उच्च और मध्यम वर्ग आधी जनसंख्या भी अगर मन में ठान ले कि सप्ताह में एक बार भी गौ सेवा को अपना योगदान देगी तो भारत में कोई भी गाय माता भूखी या बीमार नहीं रहेगी। गायों के लिए पर्याप्त भोजन और फिर उसके बदले में आपके लिए पर्याप्त दुग्ध और उससे बनी सामग्री, कोई कमी नहीं, कोई मिलावट नहीं। कोई ग्वाला फिर दूध में न पानी मिलायेगा और न ही कास्टिक सोडा। सच मानिए देश में दूध की धारा बहने लगेगी और सब तरफ़ समृद्ध माहौल बनने लगेगा।
आपको बताना चाहती हूँ कि स्विटजरलैंड एक ऐसा देश है, जहाँ की पूरी अर्थव्यवस्था गायों पर निर्भर करती है, वहाँ गायों को बहुत प्यार से रखा जाता है और उनका आदर से लालन-पालन होता है। वहाँ गाय हमारी माता है का न तो दिखावा है, न ढोंग और न ही कोई राजनीति। वहाँ दूध से बने उत्पाद विश्व में सबसे उत्कृष्ट श्रेणी में आते हैं। सवाल आपसे है कि क्या भारत में ऐसा नहीं किया जा सकता? अवश्य ऐसा संभव है अगर इस पर हम सभी मिलकर सहयोग करे और संभवतः हमारे बीड़ा उठाने से देश के कुछ चंद नेताओं द्वारा की जाने वाली भ्रष्ट राजनीति को भी पूर्ण विराम लग जाएगा। अफ़सोस! आजादी के बाद राष्ट्र का सबसे बड़ा मुद्दा ही गौ रक्षा और गौ सेवा रहा है, इसीलिये गंदी राजनीति पनपती भी यहाँ से है क्योंकि यही मुख्य गढ़ है, वजह आप सभी जानते ह सरकार से कोई सहायता चाहिए तो उनकी चाकरी तो बजानी ही होगी लेकिन अगर हमने योगदान भरपूर मात्रा में शुरू कर दिया तो बंटवारे की राजनीति वाला वातावरण ही समाप्त हो जाएगा।
अपने बच्चे को जन्म देने के बाद माँ का दूध और विकल्प में गाय का अमृत तुल्य दूध सर्वोत्तम होता है और बच्चों को वही पिलाया जाता है फिर बच्चा चाहे हिन्दू का हो या मुस्लिम का, सिख का हो या ईसाई का, इसलिये सेवा भी सबको मिलकर ही करनी चाहिए। भारत देश में सबसे बड़ी राजनीति गौ माता पर है, जिसका स्वरूप बद से बदतर होता चला गया है, उसे अब देश की सिर्फ आम जनता ही सुधार सकती है।
कोलकाता में किसी विशेष शख्स से उनके कार्यालय में मुलाकात हुई तो देखा कि उन महाशय का वजन काफी बढ़ा है तो मैंने पूछा कि इतना वजन क्यों? तो उनका जवाब में कहना था कि ऑफिस से रात को घर जाता हूँ, खाना खाता हूँ और सो जाता हूँ, मैंने उनसे पूछा कि आप दूध, दही का सेवन तो करते होंगे तो जवाब में हाँ था। मैंने उन्हें एक सलाह दी कि आपके आसपास गाय तो अवश्य होगी तो क्यों नहीं खाने के बाद उसे गुड़ खिलाने,रोटी, हरी सब्जी, फल के छिलके इत्यादि खिलाने के लिए रोज जाए, ऐसे में आपकी सैर भी हो जाएगी और गौ सेवा भी। उन महाशय को मेरा यह मशवरा काफी पसंद आया और कहा कि ऐसा तो मैंने सोचा भी न था।हो सकता है कि आपको भी मेरा यह विचार पसंद आ जाए। मन में सेवा भाव जाग्रत करो तो रास्ते स्वयं खुलते चले जाएंगे। आपको एक राज की बात बताऊँ कि जिस गौशाला में जाती हूँ वहाँ की अधिकतर गायें मुझे देख कर खुश होती है और मुझे भी उनकी सेवा करके बेहद खुशी मिलती है। हिंदू संस्कृति की मान्यतानुसार गाय में 34 कोटि देवी देवताओं का वास होता है और विशेषकर पूंछ में हनुमानजी का वास होता है, जिसे सर पर झाड़ा लगवाने से हमें दुख, कष्ट, और विपदाओं से मुक्ति मिलती है।
गाय माता की रक्षा के लिए हिंसक होना, गुंडागर्दी करना, मार पीट करना अन्यायपूर्ण है तो उसकी हत्या कर उसका मांस खाना भी निरीह पाप है अतः भारत के सभी देशवासियों को यह समझना होगा कि गौमाता का सम्मान और संवर्धन ही विकास का मूलमंत्र है। जिन लोगों को अपने बचपन के पाठ पर भरोसा है वे निश्चित तौर पर तन-मन-धन से गौ माता की सेवा अवश्य करेंगे।
गर्व से कहो कि… गाय हमारी माता है , बचपन की मस्ती में कहा करते थे … हमको कुछ नहीं आता है, पर आज सिर्फ इतना कहूँगी कि हमको सब कुछ आता है , सेवा करना हमको भाता है , गौ सेवा से इंसान पुण्य कमाता है , दैवीय कृपा से भवसागर तर जाता है।
गाय माता की पुका
भारत वासी गाय को माता स्वरूप मानते है।गाय के प्रति आपके द्वारा दिये गये प्रेरक विचारों के बाद मेरा कुछ कहना अतिश्योक्ति होगा।
गाय जिसके हर अंग में प्रभु का वास है आज जब हम उनपर हो रहे अत्याचारों के बारे में पढ़ते है तो मन बहुत दुखित होता है।
गौ सेवा यांनी प्रभु सेवा।गौ सेवा मतलब हमारे कष्टो का निवारण,संस्कारो का पुण्य अर्जन करना इत्यादि ।
गाय के दूध के अलावा चाहे गाय का मूत्र हो अथवा गोबर सभी मनुष्य के लिये उपयोगी है।
अच्छे स्वभाव को हम गाय कहते है वही कोई शैतान हो तो उसे कुत्ता कहते है। दुर्भाग्य हमारा की आज गाय की जगह कुत्ते को पालना हम अपनी शान समझते है।
हमारे देश की जनसंख्या 125 करोड़ है । क्या हम हमारे यहां चल रही गीशाला का तन मन धन से सेवा नही कर सकते।
जय श्री कृष्ण