मरणोपरांत किया जाने वाला गरुड़ पुराण विलुप्ति के कगार पर।
सनातन धर्म के आधार पर मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण सुनने का प्रावधान बनाया गया है। वेद व्यास द्वारा रचित भागवत् के अध्याय से निकले गरुड़ पुराण में विष्णु की भक्ति और मृत्यु के बाद की यात्रा का उल्लेख किया गया है लेकिन इसे मृत्यु से नहीं जीवन से जोड़ा दिया जाए तो शायद सही मायने में लोगों को समझ आएगा। जीवन में प्रकृति, धर्म-कर्म, मन बुद्धि चैतन्य भाव के अनुसार ही जीना पड़ता है, एक ओर बुरे कर्मों के प्रभाव से नारकीय यातना भुगतनी पड़ती है तो दूसरी ओर अच्छे कर्मों से आपको सुंदर और संतुष्ट जीवन की प्राप्ति होती है।हम अपने जीवन में अनेकानेक उदाहरण देखते हैं, और कहते भी हैं कि यह हमारे द्वारा किए गए कर्मों के ही तो फल है, सुनते सभी है समझते सभी है पर अमल नहीं करते।
आज इंसान अपने कर्मों के आईने में अपनी तस्वीर देखना पसंद नहीं करता है, इसलिये इस आईने के समक्ष धीरे-धीरे उसके लिए खड़े होना दुर्भर होने लगा है और यह हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बनने लगी है क्योंकि इससे हमारे भारतीय समाज की विशिष्ट संस्कृति का हनन होने लगा है।
मृत्यु के दिन से 10 दिन तक रोज एक घंटे की कथा में सिर्फ कुछ चंद जन ही उसे सही रूप से मनन कर पाते हैं, शेष लोग तो बैठ भी नहीं पाते हैं या फिर निद्रा की स्थिति में पहुंच जाते हैं, क्योंकि यह मनोरंजन भरा चलचित्र नहीं है, अपितु जीवन का सारांश है।
मानव जीवन के अतिरिक्त किसी भी जीव को तत्वबोध एवं आत्मबोध नहीं होता है, यह सभी जानते हैं, परंतु आत्मचिंतन की आवश्यकता है, अधिकांश लोग आत्म भाव से भागते हैं और इसीलिये गरुड़ पुराण सुनने के समय उन्हें बैचैनी, निद्रा, छटपटाहट होती है, इसी कारण विलुप्ति नज़र आने लगी है जब कि इतिहास संस्कृति और संस्कारों से बंधा है, इतिहास नए संकल्प की ऊर्जा से लबालब है, इतिहास के द्वारा हमें नई उम्मीद, नए सपने, नए हौसलों का ज़ज्बा मिलता है साथ ही इतिहास हमारे भविष्य के निर्माण की प्रेरणा भी देता है। यहाँ सवाल है कि इतिहास बचाना क्या वर्तमान परिक्षेत्र में सम्भव हो पायेगा? अपने वेदों की रक्षा क्या हम से हो पाएगी?अगर नहीं तो क्या हमारा पौराणिक गरुड़ पुराण भी विलुप्ति के कगार पर आ जायेगा? कामकाजी भागती दौड़ती जिन्दगी और समय का अभाव क्या हमें हमारी संस्कृतियों से दूर ले जाएगा?
प्रकांड महाधर्म ज्ञानियों से एक निवेदन किया जा सकता है कि बदलते परिवेश में अपनी कथा के वैचारिक वाचन में मृत्यु के बाद के नर्क और स्वर्ग को प्रत्यक्ष जीवन के साथ जोड़कर उचित-अनुचित उदाहरण प्रस्तुत करें तो श्रवण करने वाले को सही ग्रहण होगा, जिससे उसका बचा-खुचा जीवन अच्छे से व्यतीत हो सके, इस उद्देश्य से पढ़ें गए गरुड़ पुराण से अवश्य समाज में एक पहल की एक नई क्रांति देखने को मिल सकती है।
गरुड़ पुराण विलुप्ति के कगार पर………..
कोई भी विषय तभी उठता है जब वह हमारे सामने आता है।गरुड़ पुराण का भी अपना महत्व होता है एवम इसका वाचन विशेष परिस्थिति (शोकाकुल वातावरण) में ही किया जाता है अतः विषय का विचार भी इसी परिस्थिति में आता है।
यह पुराण मृतात्मा की आत्मा की शांति एवम शोक संतप्त परिवारजन श्रवण कर सत्कर्म की प्रेरणा ग्रहण करे इस उद्देश्य से किया जाता है।
उद्देश्य के विपरीत आजकल इस पुराण का वाचन दिनों दिन खर्चीला एवम व्यापार का स्वरूप होते जा रहा है अतः गीता पठन कर इस पुराण के गहन उद्देश्य को मृतप्राय किया जा रहा है।
प्रायः इसका वाचन सीमित समय पर ही होता है अतः विस्तार में अथवा आधुनिक परिवेश में इस पुराण को समझाना संभव नही है।
इस पुराण को समझे या न समझे पर ध्यान से केवल श्रवण मात्र से ही सत्कर्म की भावना मन में जाग्रत होती है।🙏🏼🙏🏼
जय श्री कृष्ण