जय श्री कृष्णा
हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। 16 संस्कारों में पहला गर्भाधान संस्कार है।
नए भवन के निर्माण के समय एक राम की ईंट से पूरा भवन राममय बन जाता है, उसी प्रकार आप संतान के सृजन की प्रक्रिया में ईश्वर की आराधना को शामिल करे, तो निसंदेह आप एक अच्छी संतान के जन्मदाता बनेंगे।आप धनवान हैं अगर आपकी संतान अच्छी है,वरना धनवान होकर भी आप दरिद्र हैं।
सतह पर जीवन छिछला होता है, कुछ विशेष चाहिए तो समुद्र की गहराईयों में प्रवेश कर मंथन करना होगा, उसी तरह देह से ऊपर उठकर आत्मा से जुड़ना होगा, यह सिर्फ योग से ही सम्भव है।
दाम्पत्य जीवन में पवित्रता ही चेतना को जागृत करती है देह को हम छूते है, वो एक दैहिक प्रक्रिया है पर आत्मा से जब मिलन होता है तो दैवीय और सद्गुणों से युक्त संतान की प्राप्ति होती है।
नकारात्मक ऊर्जा नीचे की ओर बहती है,आसान है, सकारात्मक ऊर्जा ऊपर की ओर, खींचना मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं है।
संस्कृति और संस्कारों से किया जाने वाला गर्भाधान का मार्गदर्शन अपने अभिभावकों से प्राप्त किया जाता है, लेकिन इस पर चर्चा करने से अधिकांश माता पिता संकोच करते हैं। वर्तमान समय में बढ़ती आधुनिकता और भौतिकता के मध्य अपने युवा बच्चों को भी इन संस्कारों का उचित ज्ञान देना होगा, जिससे मेधावी और सतोगुण संतानों का जन्म हो।
गर्भाधान संस्कार
शेक्षणिक परिवेश से अगर हम एक पहल द्वारा उपरोक्त विषय पर रखे गये विचारों का मंथन करे तो इससे अच्छे विचार हो ही नही सकते।
मातृत्व हर स्त्री के लिए वरदान है। ईश्वर ने स्त्री को नव महीने गर्भाधान से पुत्री/पुत्र जन्म तक पीड़ा सहन करने की असीम शक्ति प्रदान की है।
दाम्पत्य जीवन यापन तहत अच्छे संस्कार,ईश्वर आराधना,दैहिक एवम आत्म समर्पण की अहम भूमिका है।
अनैतिक रूप से किया गया गर्भाधान जहॉ पाप है वही नैतिकता पूर्वक किये गये गर्भाधान की गणना 16 संस्कारो में की जाती है।
नवोदित वर्ष 2020
एक पहल नव चिंतन नव प्रेरणा का केंद्र बने इस मनोकामना के साथ अग्रिम शुभकामनाये।
जय श्री कृष्ण