गांव की माटी

गांव की माटी में सौंधी खुशबू
महकती हर साँसों में
खेतों में मधुर राग की झनकार
बैलों के घुँघरूओं में
हल चलाकर आनंद बिखरता
उमंग उठती फसलों में
लहलहाते वृक्ष झूमती शाखाएँ
पुरवाई के झोंकों में
कोपलों से खिलता परिवेश गांव का
घरौंदे चिड़ियाओं के कोटरों में
निश्चल स्वभाव सच्चे अच्छे लोग
अपनेपन की झलक रिश्तों में
स्वच्छ परिवेश मस्ती का माहौल
स्वस्थता रहती शरीरों में
शांत मौन सी रहती ज़िंदगी सबकी
संतुष्टि का एहसास हृदयों में
गाँव से ही वीर सपूतों का जन्म होता
जीवन कुर्बान करते देश सुरक्षा में
बड़ों का होता मन में आदर सम्मान
माटी की महत्ता कण-कण में
शहर की जिंदगी छल कपट राग द्वेष
मत घुसने दो गांव के ज़न-ज़न में
गाँव को गांव ही रहने दो मत छीनो रूप
शुद्ध रहे सदा जीवन की माटी अंतर्मन में।

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