आज तेरहवां दिन
घबराए मत! ये लॉकडाउन का तेरहवां दिन है।
वैसे तेरहवां दिन बड़ा महत्वपूर्ण होता है। मृत्यु के बाद स्थूल देह सुक्ष्म रुप में रूपांतरित होकर अदृश्य हो जाती है। हिन्दू संस्कृति के अनुसार किसी की भी मृत्यु होती है तो तेरहवीं पर गंगा जल से सभी ओर शुद्धि की प्रक्रिया अपनाई जाती है और जीवित इंसान सब कुछ भूल कर, सारे दुःखों को समेट कर जीवन की गति को आगे की ओर प्रस्थापित करता है और फिर नई ऊर्जा से अपने कर्मभूमि में लौटता है, कई संकल्पों के साथ अपनों के लिए अपनों के साथ।
आज कोरोना भी एक ऐसी ही अदृश्य महामारी है,जिसमें मृत्यु आशंकित है, जिसे न देखा जा सकता है, न ही महसूस किया जा सकता है, बस एक ऐसी अदृश्य शक्ति,जिसके संसर्ग से पूरा विश्व चपेट में है,इसके खौफ़ से निकलना,अपने संकल्पों को दृढ़ करना,अपनों की सुरक्षा के लिए कर्मभूमि में ऐतिहात बरतना हमारी जिम्मेदारी है,अपनों के लिए अपनों के साथ।मानव के द्वारा निर्मित अगर कोई शक्ति विनाशकारी हो सकती है तो दूसरी ओर वह अपनी सबलता से कल्याणकारी बनाने में भी सक्षम हो सकता है।
आज उस अदृश्यता का तेरहवां करें, फिर से मुस्कुराए, जीत जाए और फिर इतिहास में रहेगा… एक था कोरोना