Corona -10th day Lockdown

शीर्षक - दो पल गुफ़्तगू के
एक चिड़ियां आज मुंडेर पर आई
हँसने लगी मुझ पर और बड़ी चहचहाई
माना कि तुम पर बड़ी आपदा आई
कहने लगी तुम डरती क्यों हो भाई

फिर उसने पंख फ़ैला कर
एक कविता मुझको सुनाई....

हर रोज़ सुबह सबको जगाती हूँ
इस आँगन से उस आँगन तक
फुदक-फुदक कर जाती हूँ
सबको मधुर संगीत सुनाती हूँ
अपनी चूँ-चूँ से सबका दिल बहलाती हूँ
सूखे तिनकों से अपना घोंसला बनाती हूँ
अपनी मेहनत से छोटा सा संसार सजाती हूँ
पंख फ़ैला कर सबको जीना सिखाती हूँ
तेज गति से आसमाँ को छू जाती हूँ...

फिर भी हमारा जीना बेहाल है
प्रदूषण से साँसों में बना जाल है
पेड़ कटने से घोंसलों का बुरा हाल है
तार के बिछने से जिंदगी बदहाल है
गाड़ी मोटरों के शोर में दबी 
हमारी आवाज़ फटेहाल है

हम तो रोज प्रकृति के मारे हैं 
वक़्त और बदलाव से हारे हैं
तीव्र हवा के झोंकों से
लाचार हुए हम सारे है
क्या तुम जानती हो?
मानव ही हमारे हत्यारे है!!!

उसकी इस कविता ने मुझे झिंझोड दिया
मैंने ख़ुद को संभाला
उसके तार से दिल को जोड़ दिया

मैंने कहा..

इस कोरोना ने बहुत कुछ सिखाया है
मानवता का पाठ सबको पढ़ाया है
यक़ीन कर प्रेम का आँचल भरेगा
बहार होगी चमन खिलेगा
करेंगे हम सब तुम्हारी रक्षा
गगन में किलकारियाँ होगी 
हर शाख़ पर पत्ता आएगा
तेरी ये मधुर ध्वनि 
सबके कानों तक जाएगी
मान मेरी बात ख़ुशियाँ  फिर लौट कर आएगी।

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