बादलों की ओट में छिपा सूरज
बरसते मेघों का स्वागत करते हैं
नयनों में सजा कर सुंदर सपने
नए अम्बर का आगाज़ करते हैं
खेतों में चंचल सुघड़ यौवन उमड़ा
पूरवाई में गज़ब उमंग ढेरों मस्ती
खिले जीवन का पल-पल देखो
अंतर्मन को परिष्कार करते हैं
धानी चूनर ओढ़े वसुंधरा का
खुशियों से सत्कार करते हैं
बरसा के फुहारों में भींग कर
अरमानों को साकार करते हैं
इन्द्रधनुषी रंगों को भरकर
नीले गगन का आभार करते हैं
मनभावन सावन मिलन ऋतु में
सज कर सोलह श्रृंगार करते है
पायल कंगना बिछुड़ी खन-खन
पुलकित तन झंकृत मन हुआ
आओ प्रेम का इज़हार करते हैं
ये सावन की घटा छाई रुत में
मेघ मल्हार गाकर इकरार करते हैं।