प्रदूषण के लिए क्या दीपावली ज़िम्मेदार?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। दीपावली पर सिर्फ दो घंटे तक ही आतिशबाजी की जा सकती है साथ ही क्रिसमस एवं नूतन वर्ष के आगमन पर एक घंटे के लिए ही आतिशबाजी की इजाजत दी गई है।ऑनलाइन पटाखों की खरीदारी पर भी रोक लगा दी गई है। बात तो सही है कि प्रदूषण को कम करना बेहद जरूरी हो गया है क्योंकि जीवन खतरे में पड़ गया है पर मन सोचने को बाध्य होता है कि हमारा जन्म, हमारा परिवेश, हमारी संस्कृति इन्हीं त्योहारों के इर्दगिर्द घूमती है और इनसे होने वाली खुशी हमारे जीवन का मुख्य आधार है।

दीपावली भारतीय हिन्दू संस्कृति का सबसे बड़ा त्योंहार है।भगवान श्री राम के चौदह वर्ष वनवास काटकर अपने राज्य में लौटने की खुशी के उपलक्क्ष पर मनाया जाने वाला यह त्यौहार दीपों से प्रज्ज्वलित, रोशनी से सुसज्जित एवं बुराई से अच्छाई पर जीत के जश्न का प्रतीक है।अमावस्या की घनघोर अंधकारमय रात्रि को प्रकाशमान करने के लिए दिये जलाये जाते हैं और राम जी के लौटने की खुशी को ज़ाहिर करने के लिए पटाखे फोड़े जाते हैं।

यह भी सच है कि जैसे-जैसे दिवाली का पर्व नज़दीक आता है,वैसे-वैसे प्रदूषण का सारा बोझ दीपावली के त्यौहार पर डाल दिया जाता है तो क्या यह उचित है? प्रदूषण क्या है? हम सभी तो जानते हैं,पर क्या यह जानना ही काफी है, इसके बारे में चर्चा करके विस्तृत रूप से इसका जिक्र किया जाये तो शायद हम इस पर कुछ समाधान अवश्य निकाल पाने में समर्थ होंगे। प्रदूषण में वृद्धि कई प्रकारों से हुई है। प्रदूषण जल, थल, वायु एवं ध्वनि से मानव जीवन पर अपना कहर डालने लगा है।इसके ज़िम्मेदार कोई दूसरे अंतरिक्ष से आये हुए लोग नहीं है, अपितु हम सभी जिम्मेदार है।हम सभी ने इसे बढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है।अनुचित जल का दुरूपयोग के साथ हमने अपने नदी, तालाबों, पोखर, कुओं को गन्दा करने में सबसे बड़ा योगदान दिया है।गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी जैसी कई नदियाँ इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।नतीज़ा बीमारी, जीव-जंतुओं का मरण, गंदगी और प्रदूषण।कल-कारखानों से निकला कूड़ा कचरा तथा अपशिष्ट पदार्थ जिनके द्वारा जल का दूषित होना हमारे लिए घातक होता है। रीति रिवाजों में बंधे हिन्दू भारतीयों के शव के अंतिम संस्कार के लिए नदी में विसर्जन करना और पूजा पाठ के नाम पर फल फूल का का प्रवाहित करना प्रदूषित वातावरण को बढावा देता है तो ऐसे में मात्र दीपावली पर आतिशबाजी रोकने से इन प्रदूषणों से बचा जा सकता है?

कचरा फेंकना, थूकना,आधुनिक उपकरण जैसे मोबाइल फोन, रेडियो, टेलीविजन जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जिनका रिसाइक्लिंग संभव नहीं, ऐसी चीजों का व्यवहार दिन प्रतिदिन बढ़ने की वजह से भी प्रदूषण बढ़ता रहा है और इनकी तरंगें भी काफी घातक है। इस ओर हमारा ध्यानाकर्षक हुआ जरूर है परंतु अब वातावरण बहुत अधिक मात्रा में प्रदूषित पाया जाने लगा है, यहीं वजह है कि सुप्रीम कोर्ट को यह अध्यादेश जारी करना पड़ा है। पर्यावरण संरक्षण पर उचित ध्यान दिया जाता तो शायद आज हमें अपने त्यौहारों के आनंद को त्याग नहीं करना पड़ता।

वनों की कटाई, मिट्टी का कटाव, प्लास्टिक पदार्थों का उपयोग, खनिज पदार्थों का इस्तेमाल, बिजली का अति दुरुपयोग प्रदूषण को अत्यधिक बढ़ावा देते हैं। क्यों नहीं, उन वाहनों पर विशेष ध्यान दिया जाये जो सड़क पर धुआँ उड़ाते हुए चलते हैं और जरूरत से ज्यादा पूरे वातावरण को दूषित कर देते हैं, उन कल – कारखानों को पाबंद किया जाये जो धुएँ से पूरा वायुमंडल प्रदूषित करते हैं, सरकार को इस पर अपने सटीक और ठोस कदम उठाने बहुत जरूरी है।

ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाने में भी हमारा कोई मुकाबला नहीं! भारत के बाहर कई देशों में हॉर्न नहीं बजाया जाता है, जब तक कि आवश्यक नहीं होता है, जबकि यहाँ बिना वजह भी कार चालक हॉर्न बजाते हुए मिलते हैं,वजह है हमारी अधैर्यता साथ में वर्षों पुरानी बिगड़ी आदतें, जिसे हम सुधारना ही नहीं चाहते हैं और अब तो अगर चाहे भी तो इसको सुधारने में हमें बरसों लग जायेंगे।हिंदू हो या मुस्लिम कोई भी समुदाय हो, उनके धार्मिक स्थलों पर लाउड स्पीकर का उपयोग को बंद करवाने से ध्वनि प्रदूषण कम होगा।

अब यह तो हम सभी के उपर निर्भर करता है कि या तो प्रदूषण कम करो या त्यौहारों का आनंद ही खो दिया जाए। विज्ञान का सही उपयोग करके प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए तकनीक एवं प्रणाली को विकसित करना चाहिए। पर्यावरण को बचाने के लिए सार्थक कदम उठाना और वृक्षारोपण अति आवश्यक है।रूपाली के द्वारा होने वाले प्रदूषण से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया जाना चाहिए।

त्यौहारों पर बंदिश लगाने से हम अपने भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों को दाँव पर लगा रहे हैं क्योंकि आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति, अपने त्यौहार, अपनी धरोहर को कैसे समझ पायेंगी?दूसरा हमारे युवा वर्ग को पूजा पाठ से ज्यादा मनोरंजन में रुचि है, पटाखों को फोड़ने में भरपूर आनंद का अनुभव होता है।पटाखा बनाने वालों के रोज़गार को भी नुकसान पहुंचा है। 

                                                               रूस के नूतन वर्ष के आगमन का दृश्य

 

रूस के नूतन वर्ष के आगमन पर भारी आतिशबाजी, होंगकोंग के डिज़्नीलैंड में रोज रात को पर्यटकों के लिए आतिशबाजी जैसे कितने उदाहरण स्वरूप आपके सामने रखती हूँ जहाँ इतनी आतिशबाजी के बावजूद भी प्रदूषण की रोकथाम के लिए विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है,यह हमारी सीख है।

                                                                                                                 

                                                                                हांगकांग डिज्नी लैंड

 

प्रदूषण रहित धरती को बनाने में हरी भरी एवं स्वच्छ जीवन शैली को विकसित करना होगा। यह हमारे त्यौहारों के परम आनंद की निरंतरता को बनाये रखेगा।

2 Comments

  1. सुप्रीमकोर्ट भी सिर्फ हिन्दुवो के त्योहारों को टारगेट करके निर्णय करती है जबकि अन्य जैसे मुस्लिमो के त्योहारों में बकर ईद को कितने जानवर काटे जाते है उनसे प्रदूषण नही होता क्या तथा दिनभर लोडिश पीकर पर चिल्लाते रहते है उनके लिये कोई कुछ नही ,यही तो तुस्टीकरण की राजनीति कोर्ट भी करने लगी।
    इसका मुख्य कारण है हिन्दुवो एकता नही है,और कोंग्रेस जैसी पार्टी वोटों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है।

  2. एक पहल द्वारा उपरोक्त विषय पर सचित्र सुंदर वर्णन किया गया है । क्या दीपावली प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।
    सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए एक भारतीय नागरिक के हैसियत से कहना गलत नही होगा कि आतिशबाजी जो साल में कुछ दिन उपरोक्त पारंपरिक उत्सव पर की जाती है प्रदूषण का कारण नही हो सकती।विज्ञान कहता है कि दीपावली पर की गई आतिशबाजी या फटाके फोड़ने से इसका जो धुँवा वायुमंडल में फेलता है उससे प्रदूषण नही फेलता परंतु डेंगू,चिकनगुनिया के मच्छर मर जाते है तात्पर्य यह स्वास्थ्य वर्धक है।
    सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आतिशबाजी केवल 2 घंटे रात्रि 8 से 10 तक ही करे।क्या सभी लोग यह लक्ष्मी पूजन गोधूलि बेला यानी संध्या को ही करते है। कहने का तात्पर्य सभी के पूजा का मुहर्त एक समय नही होता और आतिशबाजी पूजा के बाद ही कि जाती है। जरा सोचिये क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन हो पायेगा
    यह कहना सही है कि प्रदूषण के स्त्रोत जल – थल – वायु एवम ध्वनि हो सकते है।
    स्वछता अभियान तहत थल पर पाये जाने वाले कुछ प्रदूषण में कमी आई है।
    नदी – नालों- कुओ तथा तालाबो में बढ़ती हुई गंदगी, गाड़ी-ट्रक-विविध ओधोगिक कारखानों से निकलता हुआ जहरीला धुँवा तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से पसारता हुआ ध्वनि प्रदूषण आज प्रदूषण के प्रमुख कारण है।
    वनों की कटाई वृक्षो की कमी पहाड़ो पर मार्ग बनाने हेतु पहाड़ो को काटना इत्यादि प्रकृति पर हो रहे प्रहारों का असर आज पर्यावरण पर पड़ रहा है।
    यह बात उतनी ही सत्य है कि इस सारे प्रदूषण के जबाबदार हम खुद है।शायद उपरोक्त लेख पढ़कर लोगो मे कुछ जागरूकता आये।
    चाहे रूस, हांगकांग हो या डिझनीलैंड प्रदूषण का प्रभाव तो हर जगह पड़ता ही है पर वहां की सरकार या लोग इतने जागरूक है कि प्रदूषण निराकरण के उपकरण वहां पहले से उपलब्ध रहते है।
    क्या हम इसका निराकरण नही कर सकते जरा सोचिए।
    जय श्री कृष्ण

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