दावत पर बुलाया है

मन में बल्लियां खिल रही है निमंत्रण घर द्वार आया है
सुनो सुनो सब दुनियाँ वालों आज दावत पर बुलाया है
कुछ पुरानी बातें याद आई वो समय अंखियों में समाया है
परिवार में सात्विक प्रेम मित्र रिश्तेदारों में स्नेह का साया है। 

जब साल का मिलता एक निमंत्रण मन में उमड़ती खुशियां
क्या सरल सोच के वो दिन थे अहमियत की  ग़ज़ब दुनियाँ
एक दूजे का कर सत्कार अपनेपन की चहकती  बगिया 
साथ मिलकर घरवाले बनाते खाते पकवान और मिठाईयाँ। 

वक़्त बदला होड़ बढ़ी कैटरिंग दावतों की हुई अति भरमार
ऊब होने लगी व्यंजनों की सजावट देख दिखावा हुआ परबार
झूठन से भरते कचरे के डिब्बे अन्न का होने लगा तिरस्कार
कोरोना ने रोक लगाई सिखाया हमें संस्कार और शिष्टाचार। 

अमीरी दंभ भूल गए ग़रीब को नहीं मिलती दो जून की रोटी
बड़े महल रखने वालों की ख़ुद की सोच हो गई  बहुत छोटी
बदलते समय ने फिर से बहुत कुछ सिखाया और समझाया है
अन्न और रिश्तों का करें सम्मान चलो  दावत पर बुलाया है।

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