सुप्रभात दोस्तों,

हिमालय पर्वत पर स्थित देव भूमि हिमाचल प्रदेश के स्पिती वैली की रोमांचक यात्रा का तीसरा दिन – चितकुल

चितकुल की अंधेरी रात में अचानक दो बजे नींद खुल गई तो अपने होटल के कमरे की खिड़की से अचंभित और रोमांचित करने वाला प्राकृतिक दृश्य था,ओस की बूंदे मोती जैसी कांच पर चमक रही थी चांद पूरे शबाब पर दिखाई दे रहा था,दूधिया रोशनी के साथ पर्वतों पर सफेद चादर या यूँ कहें ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों ने श्वेत टोपी पहन ली थी,इतने खुबसूरत नजारों को मेरी आँखों ने अपने अंदर कैद कर लिया, सोने के बाद सुबह नींद खुली तो….

सूरज उग रहा था, स्वर्णिम किरणों से पहाड़, नदी, नाले, मैदान सब सोने के समान प्रतीत हो रहे थे, किन्नर कैलाश पर्वत के दर्शन किए, फिर हमने जल्दी से जुते पहने, कोट डाला और नदी के पास चले गए।

हवा काफी सर्द थी,कई युवा यात्रियों ने नदी के पास कैम्पिंग कर रखी थी।यह बहुत ही मनोरम स्थल है।

बसपा नदी पर बैठ कर फोटो उतारी, स्वच्छ जल कल-कल बह रहा था, बार-बार पत्थरों को चूम रहा था।

काफी देर आनंद उठा कर लौटे और पहाड़ों की गोद में होटल की कुर्सियाँ बिछी हुई थी, वही सुबह का नाश्ता किया, होटल वालों के संग खूब बातें की।

भेड़ों का समूह चर रहा था, भोर की शांत व सुंदर मनोभावों को संग लेकर तैयार होकर हम गाँव की ओर निकल पड़े,

जहां “फूलैच पर्व” स्थानीय लोगों द्वारा बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा था, पुरुष ढ़ोल बजा रहे थे, महिलाएं एक दूसरे का हाथ पकड़ कर नाच रही थी, ये आने वाले चार महीनों के लिए कठिन मौसम में सुखद जीवन हेतु मनाया जाता है, क्योंकि यहाँ से बर्फ बारी इतनी अधिक होती है कि कोई भी कार्य करना असंभव होता है।

इस पर्व पर देवी माँ का आह्वान होता है, गाँव वाले हर रात दस घरों में जाया करते हैं और खाना-पीना, शराब आदि से उत्सव मनाते हैं, इस तरह से ये चार दिन का उत्सव मनाते हैं, उनके साथ हम भी खूब नाचे, उनकी खुशियों में शामिल हो गए और उन्होंने भी हमारा खूब सम्मान किया।

फिर चल पड़े हम चेक पोस्ट की ओर, जो पाँच किलोमीटर की दूरी पर है,वहाँ पहुँचे तो पता चला सैनिकों की क्या दिनचर्या है, कैसे वो हमारी रक्षा करते हैं? देश एवं सैनिकों की सुरक्षा के लिए यहाँ पर फोटो बिल्कुल निषेध है।



एक कवियित्री होने के नाते देश भक्ति पर अपनी स्वरचित काव्य रचना हमारे देश के रक्षकों को सुनाना चाहती थी, संयोगवश लौटते हुए साठ-सत्तर देश के जवान मार्च-पास्ट करते हुए मिले, उनसे बात की तो उन्होंने मेरी लिखी कविता का भरपूर स्वागत किया और शुरू से अंत तक तालियों से सत्कार किया, जो मेरे जीवन का अद्भुत पल बन गया,”जय हिंद” एवं “भारत माता की जय” का नारा पूरी घाटियों में गूँज रहा था, देश भक्ति का ज़ज्बा चरम सीमा पर था। अविस्मरणीय घटना बन गई क्योंकि एक कवियित्री की आत्मा जो तृप्त हो गई, संतुष्टि व ख़ुशी का भाव लेकर हम आए ‘आखिरी ढाबा’, जो खाई पर स्थित हवा से बातेँ करता है,चितकुल के छोर पर स्थित इसे देखने को सभी उत्सुक होते हैं।

उसके बाद हम नदी के किनारे कैफे में कॉफ़ी ली और मज़े से प्राकृतिक सौंदर्य को अलक-पलक निहारते रहे।


शाम हो रही थी, हल्की-फुल्की स्नोफाल के साथ तेज बारिश शुरू हो गई और साथ में नदी की तेज आवाज़, मन का काम है चिंतित होना, बस यही चिंता थी कि बरसात अत्यधिक हो गई तो आगे कैसे बढ़ेंगे! अगले दिन हमें हिमाचल के ताबो गाँव में जाना था, ऐसे मौसम में हम आराम से बढ़ पाए या वही अटक गए, ये अगले पोस्ट में।